भाव पल्लवनः भाव पल्लवन का अर्थ है- “किसी भाव का विस्तार करना। इसमें किसी उक्ति, वाक्य, सूक्ति, कहावत, लोकोक्ति आदि के अर्थ को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। विस्तार की आवश्यकता तभी होती है, जब मूल भाव संक्षिप्त, सघन या जटिल हो किसी उक्ति, सूक्ति, भाव, विचार अथवा वाक्य के मूल भाव को विस्तार के साथ लिखना भाव-पल्लवन कहलाता है।
पेड़ में फूटे नए पत्तों को पल्लव कहते हैं और इस प्रक्रिया को पल्लवन कहते हैं। अतः किसी उक्ति अथवा वाक्य में निहित व्यापक संदेश को विस्तार देना ही भाव पल्लवन है।
उदाहरण के लिए, “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान” का भाव-पल्लवन ध्यान से पढ़िए: निरंतर अभ्यास से अज्ञानी व्यक्ति भी ज्ञानवान हो सकता है।
अभ्यास से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है और उसकी जानकारी बढ़ती है। अभ्यास के लिए परिश्रम आवश्यक होता है। परिश्रम द्वारा मंदबुद्धि व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है। बुद्धि के परिष्कार और संस्कार के लिए लगातार प्रयास करना जरूरी है।
ज्ञान की प्राप्ति और बदधि को धारदार बनाने के लिए लगातार अभ्यास करना आवश्यक होता है। परीक्षा में वही विद्यार्थी अच्छे अंक पाता है जो लगातार अध्ययनरत रहता है।
ज्ञान अपने आप हमारे पास चलकर नहीं आता बल्कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है। जो जितना अधिक प्रयास और अभ्यास करता है उसके ज्ञान का भंडार उतना ही विस्त त होता है। ज्ञान किसी की बपौती नहीं है। यह उसे प्राप्त होता है जो इसके लिए निरंतर प्रयास करता है।
आप भी एक पाठ को जितनी बार पढ़ते हैं वह आपको उतना ही बेहतर समझ में आता जाता है। आप अपनी इकाइयों को जितनी बार दोहराएँगे आप परीक्षा में उतना ही बेहतर लिख सकेंगे।
सचिन तेंदुलकर सचिन तेंदुलकर कैसे बना। जाकिर हुसैन उस्ताद जाकिर हुसैन कैसे बने। यह सब अभ्यास और रियाज का ही कमाल है। आप भी जितनी मेहनत करेंगे, जीवन में उतने ही सफल होंगे।
आपने ध्यान दिया होगा कि भाव-पल्लवन में मूल भाव को ग्रहण किया गया है। अर्थात् “करत-करत अभ्यास __ के जड़मति होत सुजान” का मूल भाव है : अभ्यास से अज्ञानी व्यक्ति ज्ञानवान बन सकता है।
इस मूल भाव से कौन-सा प्रेरणा संदेश या निष्कर्ष निकलता है ? वह है : अभ्यास से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है और उसका व्यक्तित्व परिवर्तित हो जाता है।
भाव-पल्लवन के स्वरूप में मूल भाव को समझाने के लिए किसी सहायक भाव, मान्यता, धारणा आदि का उल्लेख करते हैं। साथ ही मूल भाव किसी बड़े निष्कर्ष या नीति-संदेश की प्रेरणा देता है, तो वह भी भावपल्लवन में स्थान पाता है।
आप समझ गए होंगे कि भाव-पल्लवन के स्वरूप में मूल भाव, मूल भाव की मान्यता, धारणा आदि का उल्लेख और प्रेरणाप्रद संदेश आते हैं। इन तीनों की सहायता से भाव-पल्लवन बन जाता है।
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