Recents in Beach

नवपापषाण क्रांति से आप क्‍या समझते हैं? भारत में नवपाषाण संस्कृति के प्रमुख स्थलों का वर्णन करें।

3000 ६० पूर्व की भारत के प्रारंभिक इतिहास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह वह समय था जब मानव ने वन्य जीवन को छोड़कर अपने कदम कृषक संस्कृति की ओर बढ़ाए थे।

उपमहाद्वीप में पहली बार पशुचारी घुमंतू जीवन शैली छोड़कर मानव ने एक जगह बसना आरंभ किया और उसका स्वाभाविक अगला क्रम कृषि अर्थव्यवस्था का उद्भव था।

यह क्षेत्र भारत का उत्तर-पश्चिम इलाका (वर्तमान पाकिस्तान) से लेकर राजस्थान के मरुस्थलों तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र की जलवायुगत विशिष्टता का भी इस परिवर्तन में योगदान था।

इसने ऐसी परिस्थितियां पैदा की कि उपमहाद्वीप का विकास कम एक नई डगर पर बढ़ चला।

नवपाषाण-ताम्रपाषाण काल के स्थलों की विशिष्टता यह है कि ये सभ्यता के उस दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं जब तांबे के बने औजार और पत्थर के हथियार एक साथ प्रचलित थे। इसी कारण इन संस्कृतियों को नवपाषाण ताम्रपाषाण की संज्ञा दी जाती है। 

यह संक्रमणकाल में एक दौर को इंगित करता है। तांबे के औजार जहां एक ओर विकास के चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं दूसरी ओर पाषाण से बने अस्त्र और अन्य उपकरण अतीत से पीछा न छटने का प्रमाण हैं।

इन संस्कृतियों की पहचान मृद्भाण्ठों और विभिन्न पाषाण और अस्थि उपकरणों से की गई है। सस्तनिर्मित मृभाण्डों का प्रतीक मालीमई गुफा संस्कृति है, जो पाकिस्तान में अवस्थित है।

दूसरी ओर गुजरात और बुर्जहोम जैसे कश्मीरी स्थलों की पहचान अस्थि एवं पाषाण उपकरणों के आधार पर की जाती है।

कश्मीर घाटी में स्थित बुर्जहोम और गुफककल की विशिष्टता गर्त-निवास या जमीन के अंदर बने आवास स्थल हैं। यह उपमहाद्वीप में अन्यत्र दुर्लभ हैं और नागार्जुनकोण्डा को छोड़कर अन्यत्र इस प्रकार के प्रमाण अब तक नहीं मिले हैं। लोग जमीन के अंदर घर बनाकर माँ रहते थे, इस बात को लेकर इतितासकारों में मत बिभिन्नता है

सुभो बिद्वानों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग प्रकार के मत प्रस्तुत किए हैं। कश्मीर घाटी की अत्यंत ठंडी जलवायु के कारण माना जाता है कि ये गर्त आवास सर्दी से बचाव के लिए निर्मित किए गए थे।

इनका प्रयोग खाद्य पदार्थों और अन्य अत्यावश्यक वस्तुओं के संग्रह के लिए भी किया जाता था।

इनसे प्राप्त प्रमाण ऐतिहासिक रूप से हमारे लिए | अत्यंत मूल्यवान हैं। पशुओं और अनाजों के अवशेष, अस्थि निर्मित औजार, विभिन्न दैनिक उपयोग की वस्तुएं यहाँ से मिली हैं, जो इस स्थल को विशिष्टता प्रदान करती हैं।

नवपाषाण-ताम्रपाषाण काल के प्रमाण के तौर पर राजस्थान में दो स्थलों को लिया जा सकता है। ये गणेश्वर और अहार संस्कृतियाँ थी, जो अत्यंत प्रारंभ से ही ताम्र उपकरणों का इस्तेमाल करने के लिए विख्यात रही हैं।

इस क्षेत्र में स्थित सेतड़ी की तांबे की सानों के कारण इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए, जो आज भी ताम्र आपूर्ति का भारत में प्रमुख स्रोत है। इस प्रकार इस सभ्यता में ताम्र उपकरणों की प्रधानता थी। इनका प्रयोग दैनिक जीवन में विविध क्रियाकलापों में किया जाता था। 

ध्यान देने की बात यह है कि इनका उपयोग पाषाण उपकरणों के साथ-साथ जारी रहा। इनसे बाणों के अगले भाग, मछली फंसाने का कांटा, सौंदर्य प्रसाधन, अस्त्र-शस्त्र आदि निर्मित किए जाते थे।

अधिक मात्रा में इनकी प्राप्ति से यह अनुमान लगाना सहज है कि ये केवल स्थानीय उपयोग हेतु नहीं थे और इनका व्यापारिक उपयोग होता था। इन्हें अन्य स्थानों को निर्यात किया जाता था और इस प्रकार उस प्राचीनतम काल में यह व्यापार का एक प्रमाण प्रस्तुत करता है।

घर बनाने में लकड़ी और मिट्टी का प्रयोग किया जाता था। टाटा मिट्टी को लेपकर दीवारें बनाई जाती थी और फर्श की लिपाई भी मिट्टी से की जाती थी। ये छोटे-छोटे घर बस्तियों का एक प्रारूप प्रस्तुत करते हैं।

जहां तक इनकी अर्थव्यवस्था का प्रस्न है, यह माना जा सकता है कि हड़प्पा के नगरों से इनके व्यापारिक सम्बन्ध थे।

कई हडप्पाई स्थलों में यहां की निर्मित ताम-वस्तुएं मिली हैं, जो आदान-प्रदान की और सकत करती है। हस्तनिर्मित मृवभाण्ट भी हडपाई पदचापकों के साथ मायारमाते हैं।

व्यता बटवा कि ये हड़प्पा सभ्यता की समकालीन संस्कृतियां तो थी ही, हड़प्पा उदय से पूर्व भी ये एक विशिष्ट किस्म की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो अलग-अलग न होकर आसपास के क्षेत्रों से जुड़ी हुई थी।

इन सभ्यताओं की समकालीन एक अन्य सभ्यता दक्कन में पुष्पित-पल्लवित हुई थी, जिसे भस्म टोला संस्कृति के नाम से जाना जाता है। यह इन उत्तर-पश्चिम और राजस्थान की नवपाषाण- ताम्रपाषाण संस्कृतियों से भिन्न है। इस भिन्नता को अनेक स्तरों पर चिह्नित किया जा सकता है।

इन भस्म टीलों का उद्भव इतिहासकारों के लिए अनुमान का विषय रहा है। माना जाता है कि मवेशियों के गोबर को जलाने से इन राख के टीलों का निर्माण हुआ था। 

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि दक्षिण भारत में जाड़े के समय ठंड से बचाने के लिए आग जलाकर मवेशियों को उस पर से गुजारा जाता था, जिससे इन टीलों का निर्माण हुआ।

आज भी इस परंपरा के अवशेष कुछ पर्व-त्योहारों (पोंगल) के रूप में अवशिष्ट हैं, जो इस पुरानी प्रथा की याद दिलाते हैं।

जतां नवपाषाण-ताम्रपाषाण संस्कृतियां बड़ी नदियों के किनारे स्थित भी और अपने अस्तित्व के लिए उन्हीं पर निर्भर भी, यहीं भम्म टीला संस्कृति छोटे-छोटे झरनों के निकट पनपी।

जहां एक ओर तामपाषाणकालीन संस्कृतियां नदी-घाटियों और पहाड़ों के बीच अवस्थित थीं, वहीं दक्कन के पठारी परिवेश के कारण यहां बड़ी सदानीरा नदियों की अवस्थिति संभव नहीं थी और इसलिए झीलों और झरनों के आसपास भस्म टीला संस्कृति का आविर्भाव संभव हुआ।

एक दूसरा अंतर, जो ध्यातव्य है. वह कृषि और पशुपालन के बीच का है। जहां एक ओर राजस्थान और भारत के उत्तर-पश्चिम की संस्कृति कृषि पर आधारित भी और पशुपालन गौण होता जा रहा था बलों दूसरी ओर भस्म टीला संस्कृति पशुपालक संस्कृति भी।

यहाँ पशुपालन का केन्द्रीय महत्त्व था. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कृषि का महत्त्व नवपाषाण-ताम्रपाषाण संस्कृतियों में था। पशुओं के अवशेषों का मिलना और मूर्तियों चित्रों में पशुओं के अंकन से इस धारणा को बल मिलता है। 

इस प्रकार समकालीन होते हुए भी ये दोनों संस्कृतियां अलग-अलग युगों और प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करती है।

भस्म टीला संस्कृति क्षेत्र में पाई जाने वाली फसलें ताम-पाषाण संस्कृति की फसलों से भिन्न हैं। दोनों क्षेत्रों में वही फसलें उगाई जाती भी, जो उस जलबायु के उपयुक्त थी। इस क्षेत्र में वर्षा कम होती थी अत: बार-बाजरा एवं दालें मुख्य रूप से उगाई जाती थी, जो ताम्र-पाषाण संस्कृति की फसलों से गुणात्मक रूप से भिन्न थीं।

उन संस्कृतियों को दक्कन या बक्षिण की तुलना में अधिक जल उपलब्ध था, जिसका प्रभाव फसलों के पैटर्न और तरीकों पर दिखता है।

नवपाषाण-ताम्रपाषाण संस्कृतियों के विपरीत यहां फसलों की अनेक किस्मों का जंगल से लाकर घरेलूकरण किया गया। इस प्रक्रिया में शताब्दियां लग गई. पर यह समकालीन संस्कृतियों की अपेक्षा कठिन रहा होगा।

जहां कश्मीर, उत्तर-पश्चिम और आज की संस्कृतियों में गेहूं मुख्य भोजन था. यहां चावल के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं। इसका कारण भी मुख्य रूप से जलवायुगत भिन्नता थी।

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close