सौर विकिरण से पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल गर्म होते हैं। आने वाले विकिरण का लगभग एक-तिहाई भाग वापिस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, लगभग 20% वायुमण्डलीय गैसें अवशोषित कर लेती है और शेष भाग पृथ्वी की सतह तक पहुंचता है जहाँ वह अवशोषित हो जाता है। इस प्रकार अवशोषित ऊर्जा अवरक्त किरणों 1998) के रूप में वापिस परावर्तित होती हैं। इसमें से कुछ विकिरण वायुमण्डलीय गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है और इस तरह आने वाली कुल ऊर्जा का संपूर्ण भाग वापिस अंतरिक्ष में नहीं पहुंचता है। अतः कुछ उष्मा इन गैसों द्वारा रोक ली जाती है जिससे वायुम॑ण्डल गर्म हों जाता है। यही वह कारण है जिससे पृथ्वी का औसत तापमान -18% से बढ़कर 15% हो जाता है और यहाँ पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह स्थिति ग्रीन हाऊस ) जैसी है जिसमें कांच की दीवारें उष्मा को बाहर नहीं जाने देती है, जिससे भीतर का तापमान बढ़ता जाता है। इसीलिए इसे ग्रीन हाऊस प्रभाव कहा जाता है।
गैसें,
जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लुरोकार्बन तथा जल वाष्पों के कारण ही
ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न होता है और इसलिए इन गैसों को पौध घर गैसें या ग्रीन
हाऊस गैसें कहते हैं। ग्रीन हाऊस प्रभाव में जल का योगदान लगभग दो-तिहाई और कार्बन
डाइऑक्साइड का लगभग एक-चौथाई होता है| वायुमण्डल में पाई
जाने वाली अन्य गैसें जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन , ऑर्गन, अवरक्त विकिरण का अवशोषण करने में असमर्थ
होती हैं। औद्योगिक क्रांति के बाद वायुमण्डल में जलवाष्पों की सांद्रता में कोई
विशेष परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा में बहुत वृद्धि हुई
है। मानव क्रियाकलापों, जैसे कि जीवाश्म ईंघनों से ऊर्जा
उत्पन्न करने तथा वनोन्मूलन से CO, की सांद्रता बढ़ी है।
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