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भारत के प्रमुख भौगोलिक भू-भागों की चर्चा कीजिए तथा हिमाललय की सतही विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।

 भारतीय उपमहाद्वीप का भोगोलिक क्षेत्र अत्यन्त विशाल है। यहाँ जटिल भोगोलिक संरचनाएँ पायी जाती हैं। इसके उत्तरी-पश्चिमी व पूर्वी क्षेत्रों में हिमालय पर्वत श्रेणी विस्तृत रूप में फैली हुई है। भारत का दक्षिणी प्रायद्वीपीय भाग मुख्यत: पठारी क्षेत्र है। इन दोनों के मध्य विस्तृत एवं उपजाऊ मैदानी भाग अवस्थित है। भारत विविध वनस्पतियों, मिट्धियों व जन्तुओं का देश हे। भारत को भौगोलिक विशेषताओं की दृष्टि से चार प्रमुख सतही प्रदेशों में बाँटते हैं। ये है-पहला, उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र; दूसरा, दक्षिणी पठारी क्षेत्र; तीसरा, मध्यवर्ती मैदान; चोथा, तटवर्ती मैदान ओर द्वीप समूह। उत्तरीय पर्वतीय क्षेत्र को ही हिमालय के नाम से जाना जाता हे। उत्तर के पर्वतीय क्षेत्र को चार प्रमुख समानांतर पर्वत श्रेणी क्षेत्रों में बाँठा जा सकता हे-

(i) ट्रांस-हिमालय क्षेत्र, (ii) वृहत हिमालय, (iii) लघु हिमालय, (iv) शिवालिक हिमालय। हिमालय के उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी छोरों पर सिन्धु व दिहांग गॉर्ज मिलते हैं। हिमालयी क्षेत्र में काराकोरम, शिपकीला, नाथुला, बोमडिला आदि अनेक दर्रे भी मिलते हें। भारत के मध्यवर्ती मैदान को सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है। यह मैदान जलोढ़ अवसादों से निर्मित है। इसमें जलोढों का निक्षेप गहराई तक मिलता है। इन मैदानों में उच्चावच अत्यधिक कम है। अम्बाला के आस-पास की भूमि इस मैदान में जल विभाजक का काम करती है, क्योंकि इसके पूर्व की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में एवं पश्चिमी नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। धरातलीय विशिष्टता के आधार पर इस मेदान को चार भागों में बाँठ गया हे-(i) भाबर प्रदेश, (ii) तराई प्रदेश, (iii) बांगर प्रदेश, (iv) खादर प्रदेश।

   इसी तरह प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवाना भूमि है, जो आकृति में त्रिभुजाकार है। इसकी औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर हे। अरावली, राजमहल और शिलांग की पहाडियाँ इस पठार की उत्तरी सीमा पर हैं। राजमहल-गारो गैप वस्तुत: राजमहल व मेघालय की पहाडियों के बीच के भाग के जलोढ़ निक्षेपों द्वार ढक जाने से निर्मित हुए हें। प्रायद्वीपीय पठार की ढाल उत्तर ओर पूर्वी ओर हे जो सोन, चंबल नदियों की दिशा से स्पष्ट है। दक्षिणी भाग में इसकी ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है, जो कि महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी की दिशा से स्पष्ट है।

   भारत में दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार अनेक भागों में विभक्त है। इसके अन्तर्गत मालवा, बैतूल व बघेलखण्ड का पठार, तेलंगाना का पठार, शिलांग का पठार, हजारीबाग व छोटानागपुर पठार आदि शामिल किए गए हैं।

   प्रायद्वीपीय पठारी भाग के पूर्व व पश्चिमी दिशा में दो सँकरे तटीय मैदान मिलते हें, जिन्हें क्रमश: पूर्वी तटीय एवं पश्चिमी तटीय मैदान कहते हैं। इनका निर्माण सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन व निश्षेपण एवं पठारी नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के जमाव से हुआ हे। पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात से कन्याकुमारी के तटीय क्षेत्र तक विस्तृत हे। पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में ज्वारनदमुख एवं लैगूनों की प्रधानता पायी जाती है। पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना में अधिक चौड़ा है। महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों के डेल्टाई भागों में इसकी चोड़ाई और भी बढ़ जाती हे। कम कटा-छँटा होने के कारण पूर्वी तट पर प्राकृतिक बंदरगाहों की कमी हे। कहीं-कहीं लैगूनों का निर्माण भी मिलता है। उदाहरण के लिए चिल्का, कोल्लेरू व पुलीकट।

   भारत अधिक विविधतापूर्ण जलवायु एवं मृदा वाला देश है। अत: यहाँ उष्णकटिबन्धीय वन से लेकर टुंड़रा प्रदेश की वनस्पतियाँ तक पाई जाती हैं। भारत की प्राकृतिक वनस्पतियों को निम्न वर्गों में बाँठ जा सकता है-(i) उष्णकटिबन्धीय सदाहरित वन-ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। ये वन मसालों के बागान के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। (ii) उष्णकटिबन्धीय आर्द्र पर्णपाती वन-ये विशिष्ट मानसूनी वन हें। (iii) उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- ये कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। (iv) कँटीले वक्ष व झाडियाँ-ये अत्यधिक अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती हैं। (v) पर्वतीय वन-यहाँ उष्णकटिबन्धीय से लेकर अल्पाइन वनस्पतियाँ मिलती हें। (vi) ज्वारीय वन-ये डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये भी एक प्रकार के सदाहरित वन ही हें।

   भारतीय भू-दृश्य को निश्चित स्वरूप प्रदान करने में मिट्टी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत जेसे विशाल देश में उच्चावच तथा जलवायु सम्बन्धी दशाओं में बहुत विविधता पायी जाती हे। इसके कारण मिट्टियों में प्रादेशिक भिन्‍नता का पाया जाना स्वाभाविक हे। भारत की मिट्टियो का विभाजन 8 प्रकारों में किया गया है। (i) जलोढ मिट्टी, (ii) लाल मिट्टी, (iii) लैटेराइट मिट्टी, (iv) जंगली व पर्वतीय मिट्टी, (v) काली मिट्टी, (vi) शुष्क और मरुस्थलीय मिट्टी, (vii) लवणीय व क्षारीय मिट्टी, (vii) गीली और दलदली मिट्टी। भारतीय मिट्टियों में सामान्यतः नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की कमी होती हे।

    भारतीय भू-दृश्य के सामाजिक अवबोधक की जाँच-पड़ताल के लिए इसकी भौतिक विशेषताएँ एक आदर्श पृष्ठभूमि प्रदान करती हैं। प्राचीनकाल से लेकर औपनिवेशिक काल तक भारतीय समाज में होते आए उत्सर्जन सामाजिक अवबोधक का कारण हें। भारतीय भू-दृश्यों के क्षेत्र विशेष की पहचान वहाँ की संस्कृति व प्रथाओं की जानकारी प्राचीन व मध्यकालीन साहित्यों से मिलती हे। इस प्रकार भारतीय भू-दृश्य की सामान्य विशेषताएँ तथा ऐतिहासिक काल में इन विशेषताओं में हुए बदलावों के आधार पर उनके क्रमिक विकास का निर्धारण किया जा सकता हे।

    उत्तर के पर्वतीय क्षेत्र को ही हिमालय के नाम से जाना जाता हे। भारत की उत्तरी सीमा पर विश्व की सबसे ऊँची एवं पूर्व-पश्चिम में विस्तृत सबसे बड़ी पर्वतमाला है। ये विश्व की नवीनतम मोड॒दार पर्वत श्रेणियाँ हैं। हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ प्रायद्वीपीय पठार की ओर उत्तल एवं तिब्बत की ओर अवतल हो गई हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर पर्वतीय भाग की चोड़ाई घटती है, किन्तु ऊँचाई बढ़ती जाती है एवं ढाल भी तीत्र होता जाता है। उत्तर के पर्वतीय क्षेत्र को चार प्रमुख समानांतर पर्वत श्रेणी क्षेत्रों में बॉँठट जा सकता है-

(i) टदांस-हिमालय क्षेत्र-इसके अन्तर्गत काराकोरम, लद्ख, जास्कर आदि पर्वत श्रेणियाँ आती हैं। ये मुख्यतः पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में स्थित हैं। [(, या गाडविन आस्टिन (8611 मी.) काराकोरम श्रेणी की सर्वोच्च चोटी है, जो कि भारत की सबसे ऊँची चोटी है।

(ii) वृहत हिमालय-यह हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसकी औसत ऊँचाई 6000 मी. है, जबकि चोडाई 120 से 190 किमी. तक है। विश्व की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट (नेपाल) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित हे।

(iii) लघु हिमालय-इसकी औसत चोड़ाई 80 से 100 किमी. एवं सामान्य ऊँचाई 3700 से 4500 मी. हे। पीरपंजाल, मसूरी, धोलाधार इसी पर्वत श्रेणी के भाग हैं।

(iv) शिवालिक हिमालय-यह 10 से 50 किमी. चौड़ा और 900-1200 मी. ऊँचा हे। शिवालिक और लघु हिमालय के बीच कई घाटियाँ हैं, जेसे-काठमाण्डू घाटी। पश्चिम में इन्हें 'दून' या “द्वार' कहते हैं, जेसे-देहरादून ओर हरिद्वारा शिवालिक के निचले भाग को “तराई' कहते हैं। यह दलदली और वनों से ढका प्रदेश है।

   हिमालय के उत्तर-पश्चिमी ओर उत्तर-पूर्वी छोरों पर सिन्धु, व दिहांग गॉर्ज मिलते हें। पूर्ववर्ती नदियों, जेसे-सिन्धु , सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि ने हिमालय क्षेत्र में गहरी घाटियाँ, गॉर्ज व केनियनों का निर्माण किया है। साथ ही इस क्षेत्र में काराकोरम, शिपकीला, नाथुला, बोमडिला आदि अनेक दर्रे भी मिलते हैं।

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