भारत सरकार ने वर्ष 1990-91 में भुगतान शेषों की विभिन्न समस्याओं का सामना किया जिसका कारण लगातार चालू खाता घाटा तथा विदेशी विनिमय भंडार की अत्यधिक कमी थी। सरकार ने देश के भुगतान शेष को सुधारने के विभिन्न उपाय किए, जो निम्नलिखित हैं-
(1) विनिमय दर समायोजन - भारतीय मुद्रा के बाहरी मूल्य में नीचे की ओर समायोजन किया गया। विनिमय दर के निम्न समायोजन ने विदेशी खरीदारों के लिए भारतीय निर्यात को सस्ता बना दिया, जबकि भारतीय उपभोक्ताओं के लिए आयात महँगा हो गया। इस प्रकार भुगतान शेष को सुधारने के लिए निर्यात को बढ़ावा दिया गया तथा आयातों को हतोत्साहित किया गया।
(2) राजकोषीय तथा मौद्रिक उपाय - देश की कुल माँग को कम करने के लिए कड़े राजकोषीय तथा मौद्रिक उपाय किए जाते हैं। सरकार का लक्ष्य देश के राजकोषीय घाटे को कम करना था। मौद्रिक नीति का भी लक्ष्य मौद्रिक आपूर्ति को धीमाकरना था। मुद्रा आपूर्ति में कमी ने आयातित वस्तु तथा सेवाओं की माँग को कम करने में मदद की।
(3) सरेचनात्मक सुधार - उद्योग तथा व्यापार नीति के क्षेत्र में संरचनात्मक सुधारों को शुरू किया गया। व्यापार तथा उद्योग का काफी अंश तक अविनियमन हो गया। निर्यात संवर्धन उपायों को अपनाया गया तथा विदेशी निवेश नीतियों को उदार किया गया। संरचनात्मक सुधारों का लक्ष्य भारतीय उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना था। इन उपायों ने देश में उत्पादन तथा व्यापार गतिविधियों को गति देने में मदद की तथा अंततः भुगतान शेष को सुधारा।
(4) बहुपक्षीय एजेंसी से वित्त का संग्रहण - भुगतान शेष में असंतुलन की समस्या को झेल रहे देश बहुपक्षीय एजेंसियों, जैसे-अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक आदि से वित्त जुटा सकते हें। सरकार द्वारा शुरू किए गए इन उपायों ने भारतीय भुगतान शेष को सुधारने में मदद की। भारत के भुगतान शेषों की संरचना में निम्नलिखित सुधार देखे गए-
(क) वर्ष 2001-02 से लगातार तीन वर्षो में चालू खाता अधिशेष तथा पूँजी खाते के बढ़ने के फलस्वरूप वर्ष 2003-04 में भारतीय भुगतान शेष सुदृढ़ हो गया।
(ख) चालू दशक में चालू खाते में बढ़ता अधिशेष भारतीय भुगतान शेष की एक विशेषता रही।
(ग) भारतीय बाहरी क्षेत्र ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया तथा सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में वर्ष 1990-91 में निर्यात 5.8% हो गया तथा वर्ष 2001-02 में यह सकल घरेलू उत्पाद क॑ 9.4% तक बढ़ गया। आगे चलकर यह वर्ष 2003-04 में 10.8 प्रतिशत बढ़ गया था।
(घ) इसी प्रकार आयात भी सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में वर्ष 1990-91 में 8.8% से बढ़कर वर्ष 2001-02 में 12.0% हो गया। आगे चलकर यह वर्ष 2003-04 में 13.3% हो गया था।
(ड) चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में वर्ष 1990-91 में -3.1% था जो वर्ष 2001-02 में सकल घरेलू उत्पाद के -0.5% तक सुधर गया। आगे चलकर यह वर्ष 2003-04 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.8% तक हो गया।
(च) बाहरी ऋण वर्ष 1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद क प्रतिशत का 28.7% था जो वर्ष 2001-02 में 21.2% तक नीचे आ गया। आगे चलकर यह वर्ष 2003-04 में सकल घरेलू उत्पाद के 17.8% तक गिर गया।
(छ) वर्ष 1991 में ऋण सेवा अनुपात 35.3% था जो वर्ष 2004 में 10.4% तक नीचे आ गया।
(ज) वर्ष 1990-91 में विदेशी विनिमय सुरक्षित भंडार अमेरिकी $1278 तक गिर गया, जो वर्ष 2001-02 में अमेरिकी $11757 मिलियन तक हो गया। आगे चलकर यह वर्ष 2003-04 में अमेरिकी $36.9 बिलियन हो गया।
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