चिश्ती सिलसिला
सल्तनत काल में चिश्ती
संप्रदाय का विकास दो चरणों में संपन्न हुआ | 1356 में शेख नसीरूद्दीन (चिराग-ए दिल्ली) की मृत्यु के बाद प्रथम चरण समाप्त हुआ | 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसकी 265 अवनति
हुई । दूसरे चरण की शुरुआत
15वीं-16वीं शताब्दी में पूरे देश में इसके पुनरुत्थान और प्रसार से हुई।
प्रथम चरण
भारत में स्थित सूफी संप्रदायों
में चिश्ती संप्रदाय सबसे लोकप्रिय था| इसका प्रारंभ हेरात में हुआ था। सिजिस्तान में जन्मे (लगभग 1141) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ने
भारत में इस संप्रदाय की स्थापना
की (मृत्यु 1236)। वे गौरी के आक्रमण के समय भारत आये | 1206 में अंतिम रूप से वे अजमेर में बस गए और उन्हें मुसलमानों और
गैर-मुसलमानों सभी का आदर प्राप्त हुआ। उनके कार्यकलापों का कोई प्रमाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं
है| बाद में, कई दंतकथाओं में उन्हें इस्लाम धर्म के उत्साही प्रचारक के रूप में दर्शाया गया | पर असलियत यह है कि उन्होंने धर्म परिवर्तन में कभी सक्रिय हिस्सा नहीं लिया और गैर-मुस्लिमों के
प्रति उनका दृष्टिकोण उदारवादी था। आने वाली शताब्दियों में अजमेर स्थित उनकी मज़ार प्रमुख तीर्थस्थल बन गई।
द्वितीय चरण
सल्तनत काल में शेख
नसीरूद्दीन की मृत्यु के बाद चिश्ती सिलसिले का पतन आरंभ हुआ और दिल्ली से बिखरकर यह विभिन्न क्षेत्रीय राज्यों
में फैल गया। यहीं से चिश्ती सिलसिलों के इतिहास का दूसरा दौर शुरू होता है। 13वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही सूफ़ी दक्खन की
ओर जाने लगे थे, पर दक््खन में चिश्ती
संप्रदाय की नींव मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में शेख बुरहानुद्दीन गरीब ने डाली। बाद में, कई सूफी चिश्ती बहमनी राज्य (1347-1538) की राजधानी गुलबर्गा जाकर बस गए। गुलबर्गा में इन सूफियों ने दरबार से अपना रिश्ता कायम किया और
राज्य संरक्षण स्वीकार किया। इस
प्रकार शासक वर्ग के प्रति चिश्ती संप्रदाय के रवैये में परिवर्तन आ गया। दूसरी
तरफ बहमनी शासकों ने उन्हें
अपने पक्ष में करने के लिए भूमि अनुदान प्रदान किए।
चिश्ती सिलसिले की
लोकप्रियता के कारण
सल्तनत काल के सभी सूफी
संप्रदायों का उद्देश्य लगभग एक था - आध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में सूफी मार्ग अपनाते हुए ईश्वर से सीधा संवाद
स्थापित करना | हाँ, प्रत्येक सूफी संप्रदाय ने अलग- अलग अनुष्ठान और रीति-रिवाज़ अपनाए और राज्य तथा
समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी अंतर था| इस काल के सभी संप्रदायों
में चिश्ती संप्रदाय को सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई और इसका प्रसार भी व्यापक क्षेत्र में हुआ। चिश्ती
संप्रदाय के अनुष्ठान, दृष्टिकोण और प्रथाओं ने
इसे मूलतः एक भारतीय सिलसिला
बना दिया था।
इसकी लोकप्रियता के कारणों
का उल्लेख नीचे किया जा रहा है:
i) चिश्ती संप्रदाय की कई
प्रथाएँ भारत में स्थापित योगियों जैसे गैर-परंपरावादी संप्रदायों से काफी मिजणी-जुजती थीं, जैसे ब्रह्मचारी और संन््यासी या जीवन व्यतीत
करना, गुरु के समक्ष दंडवत करना, सिलसिले में शामिल होने वाले नए शिष्य का मुंडन करना, और भक्ति संगीत का आयोजन, आदि कुछ ऐसी ही प्रथाएँ थीं। इस दृष्टि से, चिश्तियों को भारतीय परंपरा के एक हिस्से के रूप में देखा जाने लगा।
ii) चिश्तियों ने भारत में
गैर-मुसलमान जनसंख्या के प्रति धार्मिक सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाया और अपने को भारतीय परिवेश में ढाल लिया| भारतीय अनुयायियों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए चिश्तियों ने भारतीय प्रतीकों, मुहावरों, रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को अपना लिया। बहुत से चिश्ती संतों ने अपने मत के
प्रचार-प्रसार के लिए हिंदवी
भाषा का प्रयोग किया।
iii) चिश्ती
खानकाहों के समतावादी परिवेश ने भारतीय समाज के निचले वर्ग के सदस्यों को काफी संख्या में आदृष्ट किया | चिश्ती संत समाज के पिछड़े वर्ग के प्रति
सहानुभूति रखते थे और इसने उनके धार्मिक
दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया। चिश्ती खानकाह ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था से काफी दूर थे। व्यापारी, शिल्पी, किसान और यहाँ तक कि सफाईकर्मी भी चिश्ती संप्रदाय का अनुयाई हो सकता था। न ही
उन्होंने तुर्की शासक वर्ग के प्रजातिगत विभाजन (कुलीन और अकुलीन) को स्वीकार किया।
iv) चिश्ती गुरुओं ने उच्च
भावना से युक्त प्रेरणादायक नेतृत्व प्रदान किया। दरबार से वे दूर रहे और राज्य संरक्षण को उन्होंने अस्वीकार कर दिया, उलमा के कट्टरपंथी और बाहरी कर्मकांड संबंधी दृष्टिकोण को उन्होंने पूर्ण रूप से नकार दिया और इस्लाम की सरल मान्यताओं को सूफी शिक्षा में घोल दिया। इन्हीं सब कारणों से
चिश्ती संप्रदाय लोकप्रिय हुआ।
v) आरंभिक चिश्तियों को
मरणोपरांत अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। बाद की शताब्दियों में उनकी दरगाहों के आसपास संतों की उपासना के केंद्र बनने
लगे। कालांतर में, दंतकथाओं और जीवन लेखन के माध्यम से इन चिश्तियों की जादुई
शक्ति की गाथाएँ फैलने लगीं। यह भी कहा जाने लगा कि उनकी जादुई शक्ति के कारण ही काफी लोग उनकी ओर
आकर्षित हुए और उन्होंने गैर-मुसलमानों
का धर्म परिवतेन किया | आरंभिक चिश्ती संत चमत्कारी
शक्ति की संभावनाओं में विश्वास रखते
थे, पर उसके उपयोग को वे
अस्वीकार करते थे। सूफी मत और एवं
मान्यता में वे चमत्कार को प्रमुख तत्व नहीं मानते थे। पर आरंभिक चिश्तियों की
लोकप्रियता बढ़ाने में चमत्कार संबंधी गाथाओं ने काफी सहयोग दिया और इससे उनकी
दरगाहों को भी ख्याति मिली।`
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