हम उन लोगों के नाम क्यों विस्मृति कर जाते हैं, जिनसे हम बस मिले थे? या हम कुछ मिनट पहले डायल किए गए फोन नंबर को क्यों विस्मृति कर जाते हैं? हम सभी ने अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में विस्मृति का अनुभव किया है, लेकिन इसके पीछे क्या कारण हैं? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, विस्मृति हमारी स्मृति प्रणाली से पहले से ही संकूटित और संग्रहीत जानकारी को पुनः प्राप्त करमे की हमारी असमर्थता है |
विस्मृति की प्रकृति को
समझने के लिए , जर्मन मनोवैज्ञानिक , हरमन
एबिंगहॉस ने 1879 में पहला व्यवस्थित प्रयोग किया था। उन्होंने कई सीवीसी (व्यंजन
स्वर व्यंजन) निरर्थक शब्दांश जैसे छाज्ञ या च्क बनाए और खुद पर प्रशासित किए।
केवल स्वयं पर और स्वयं के अनुभव का उपयोग करने की विधि को आत्मनिरीक्षण विधि के
रूप में जाना जाता है स्मृति और विस्मृति की प्रकृति की जांच करने के लिए, सबसे पहले, उन्होंने निरर्थक शब्दांश की सूचियों को
याद किया, जब तक कि वह पूर्व-निर्धारित मानदंडों तक नहीं
पहुंच गये और फिर बदलते हुए समय अंतराल के बाद उनके द्वारा सही याद रखे गए निरर्थक
शब्दांश की संख्या को मापा इसके अलावा, उन्होंने ये भी नोट
किया की अलग अलग समयांतराल में पुनः उसी निरर्थक शब्द सूची को याद करने में कितने
प्रयास लगे। अपनी प्रेक्षणों के आधार पर, वह विस्मृति की
प्रकृति की व्याख्या के लिए निम्नलिखित वक्र प्रस्तुत किया था;
मूल रूप से साहित्य में उपलब्ध
सिद्धांतों के निम्नलिखित दो वर्ग हैं, जो विस्मृति का कारण बताते
हैं:
1)
हस्तक्षेप का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार, विस्मृति का कारण,
अन्य स्मृतियों के साथ हस्तक्षेप की वजह से होता है। यह हस्तक्षेप
दो प्रकार का हो सकता है :
अग्रगामी हस्तक्षेप - पहले से सीखी गई जानकारी के हस्तक्षेप के
कारण नई अधिग्रहीत सूचना का विस्मृति हो जाना।
पूर्व-व्यापी / पश्चगामी हस्तक्षेप
(रेट्रोएक्टिव इंटरफेरेंस (रेट्रो - बैकवर्ड)) – नई जानकारी सीखने के कारण पहले से
संग्रहीत जानकारी को विस्मृति कर जाना।
स्मृति चिन्ह क॑ क्षय का सिद्धांत
यह सिद्धांत अनुपयोग सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है। स्मृति
चिन्ह के क्षय के सिद्धांत अनुसार, अधिगम के कारण
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भौतिक तौर पर स्मृति चिन्हों का निर्माण होता है। जब
इन स्मृति चिन्हों का लंबे समय तक उपयोग नहीं किया जाता है, तो
उनमे क्षय होता है और यह विस्मृति का कारण बन जाता है। इस प्रकार, इस सिद्धांत का रेखांकित करने वाला मंत्र “उपयोग करो या फिर भूल जाओ“ है ,
अर्थात, यदि आपने अपनी संग्रहीत जानकारी का
उपयोग नियमित अंतराल पर नहीं किया है,तो आपको इसे खोने का खतरा
अधिक हो सकता है |
2) संकेत आधारित विस्मृति का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार, उपयुक्त संकेत की अनुपस्थिति या खराब संकेत की उपस्थिति के कारण भी विस्मृति हो सकती है मान लीजिए कि आपको बाजार से खरीदने के लिए वस्तुओं की एक सूची दी गई, गलती से, आप से वो सूची खो गयी | अब, आप सूची से सभी वस्तुओं को पुन:प्राप्ति की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस बात की अच्छी संभावना है कि आप कई चीजों विस्मृति कर जाएंगे | अध्ययनों के अनुसार यदि विषयों, अंषों को उन वस्तुओं की श्रेणी के बारे में संकेत या सुराग दिया जाय, तो इससे उनके स्मरण में सुधार हुआ अध्ययनों ने यह भी स्पष्ट किया है कि पर्यावरण की भौतिक विशेषताएं भी सकारात्मक भूमिका निभाती हैं
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