प्रशासन या राजकाज में प्रयुक्त होने वाली भाषा को प्रशासनिक भाषा कहा जाता हैप्रशासनिक भाषा का स्वरूप सामान्य भाषा से भिन्न होता है। इसका समूचा स्वसरकार की विशिष्ट कार्य-प्रणाली पर आधारित है और यह कार्य-प्रणाली के पीछेनिहित सिद्धांतों से नियंत्रित भी है। वास्तव में सरकार एक अमूर्त सत्ता है। इसके अधिकारों का उपयोग किसी अधिकारी विशेष द्वारा नहीं वरन् अधिकारी समूह द्वारा होता है। ये सरकारी अधिकारी सरकारी तंत्र के विभिन्न अधिकारियों के बीच अलग-अलग स्तरों पर विभाजित होते हैं। यही कारण है कि प्रशासनिक हिंदी विशेषकर कार्यालयी हिंदी की संरचना में वास्तविक कर्ता का लोप होता है। यदि वास्तविक कर्ता का प्रयोग होता भी है तो अप्रत्यक्ष रूप में या प्रतीक रूप में। सरकारी अधिकारी का कोई भी निर्णय उसका निजी निर्णय नहीं होता है। वह अमूर्त या अदृश्य सरकार का निर्णय होता है जिसने अपने अनेक अधिकारों में से एक अधिकार या उसके किसी अंश को अपनी ओर से किसी अधिकारी को दे रखा होता है और वह अधिकारी अमूर्त सरकार की ओर से उसका प्रयोग करता है।
प्रशासनिक भाषा सरकारी
कर्मचारियों-अधिकारियों के साथ-साथ जनसामान्य से भी संबंधित होती है। यानी जो लोग
प्रशासन की व्यवस्था कर रहे हैं और जिनकेलिए कर रहे हैं उन दोनों का भाषा व्यवहार
इससे जुड़ा होता है। इसिलए सरकारी कामकाज की भाषा की प्रकृति के आधार पर कार्यालयी
या प्रशासनिक भाषा की विशेषताएँ है, जिनका परिचय आगे दिया जा
रहा है।
1.
बोधगम्यता एवं एकार्थता : बोधगम्यता
एवं एकार्थता प्रशासनिक भाषा की पहली शर्त होती है। भाषा की बोधगम्यता एवं
एकार्थता को बनाए रखने के लिए कार्यालयी साहित्य में अभिधापरक भाषा का ही प्रयोग
किया जाता है। अभिधात्मक प्रयोग से प्रशासनिक भाषा पूरी तरह से एकार्थक रूप धारण
कर लेती है। इससे कथ्य में स्पष्टता आती है। विषय-वस्तु को सीधे-स्पष्ट शब्दों में
कहा जाना इसमें जरूरी होता है।
2. निर्वेयक्तिकता : सरकारी तंत्र में अधिकारों का वितरण सुनिश्चित क्रम में होता है। अतः प्रत्येक अधिकारी या तो अपने उच्चाधिकारी के आदेश का पालन करता है या निम्न अधिकारी को आदेश देता है या सरकार के निर्णयों की सूचना देता है। दूसरे शब्दों में सरकारी अधिकारी का सरकारी आदेश से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं होता। वह अधिकारी व्यक्तिगत रूप में कुछ न कहकर निर्वेयक्तिक रूप में कहता है; जैसे, 'पत्र भेजा जा रहा है।'
3.
आज्ञार्थक या सुझावपरक वाक्य प्रयोग :
प्रशासनिक तंत्र में कर्मचारियों की कई श्रेणियाँ होती हैं। कोई अधिकारी होता है
तो कोई उसके अघीनस्थ कर्मचारी । फिर अधीनस्थ कर्मचारी के नीचे भी कोई अन्य
कर्मचारी होता है। इनके बीच आदेशों का आदान-प्रदान होता है।
4.
औपचारिक भाषा रूप : प्रशासन
तंत्र का पूरा परिवेश पदों की क्रमिक श्रृंखला पर आधारित होता है, इसलिए प्रशासन की भाषा में शिष्टाचार का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रशासन
की भाषा में शिष्टाचार औपचारिकता के कारण होता है। साधारणत: जब हम आपस में बात
करते हैं तो वहाँ अनौपचारिक भी हो जाते हैं लेकिन प्रशासनिक कार्यालय में अधिकतर
औपचारिक भाषा का ही प्रयोग होता है। यह औपचारिकता और शिष्टाचार प्रशासनिक पत्राचार
में जगह-जगह दिखाई देता है।
5.
सुनिश्चित एवं व्यवस्थित लेखन परंपरा : कार्यालयी
साहित्य का एक बंधा-बंधाया ढाँचा होता है। यानी कार्यालयी भाषा की एक सुनिश्चित
एवं व्यवस्थित लेखन परंपरा है। इस तरह का साहित्य तैयार करते समय उसी बंधी-बंधाई
परिपाटी का अनुपालन किया जाता है। अर्थात सुनिश्चित लेखन पद्धति का उपयोग किया जाता
है,
अनुकरण किया जाता है।
6.
विशिष्ट शब्दावली : जिस
प्रकार विभिन्न विषयों से संबद्ध शब्द उस विषय विशेष का विवेचन करते समय सामने
आता है,
उसी प्रकार जब हम प्रशासनिक भाषा की बात्त करते हैं तो हमारे सामने
ऐसी शब्दावली आती है जिसका सीधा संबंध प्रशासन, सरकारी
कामकाज अथवा कार्यालयों में प्रचलित कार्य-पद्धति एवं कार्य-प्रणाली से होता है।
सामान्य बोलचाल की भाषा से प्रशासन की भाषा कुछ अलग होती है। वहाँ कभी नियमों की
बात होती है तो कभी फॉर्मों, प्रपत्रों, संहिताओं, विधि अथवा अधिनियमों आदि की, और कभी सांविधानिक रूप भी सामने आते हैं। वहाँ फाइलों पर लिखी जाने वाली
टिप्पणियों की भाषा होती है, प्रारूपों की भाषा होती है,
ज्ञापनों, परिपत्रों, अधिसूचनाओं
और विज्ञप्तियों की भाषा होती है। इन सभी के लिए कुछ विशेष शब्द रूढ़ हो जाते हैं
जो निरंतर उसी क्षेत्र के प्रयोग में आते हैं। कहीं 'मूल
नियमावली, कहीं 'वित्तीय शक्तियाँ',
कही 'अनुशासनिक कार्रवाई', कहीं 'कार्यालय कार्यविधि', और
कहीं आदेश' तथा ननिर्देश'। भाषा के इस
स्वरूप के लिए विभिन्न संकल्पनाओं की सही एवं सटीक अभिव्यक्ति की दिशा में ही
हमें विशिष्ट शब्दावली की आवश्यकता पड़ती है। प्रशासनिक जैसे- “अधिकारी, 'आयोग', 'कर्मचारी', 'ग्रेच्युटी',
'तदर्थ', 'पदस्थ', 'पेंशन',
'निलंबन', 'प्रपत्र', 'मंजूरी',
'सरकार', 'सहकारी' आदि।
7.
प्रशासनिक अभिव्यक्तियाँ : प्रशासन
की कार्य-प्रणाली की एक निश्चित प्रविधि है। उस प्रविधि के अनुसार किसी मामले पर
की जाने वाली कार्यवाही विभिन्न स्तरीय कार्यालय अधिकारियों तथा कर्मचारियों के
चिंतन-मनन, निर्णय तथा लेखन से ही हो पाती है। कोई कार्यवाही
मौखिक नहीं होती। सब कुछ कागज पर लिखित रूप में होता है। जब भी किसी मामले में
संबद्ध पत्रादि की कोई फाइल बनती है तभी से उस पर लिपिक से लेकर उच्चाधिकारी तक के
द्वारा लिखने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न स्थितियों
या संदर्भों के लिए भाषा व्यवहार भी रूढ़ हो गया है। प्रशासनिक कार्यवाही को
व्यक्त करने के लिए सुनिश्चित वाक्य तथा वाक्यांश हैं जिन्हें 'प्रशासनिक अभिव्यक्तियाँ' कहा जाता है।
8.
संक्षिप्ताक्षर-प्रयोग (Use of Abbreviations) : किसी भी भाषा का उद्देश्य मनुष्य के मनोभावों और विचारों की
पूर्णाभिव्यक्ति है। किंतु इसके लिए अनावश्यक शब्दों का ढेर लगाते हुए कथ्य से
भटकने की आवश्यकता नहीं। कम शब्दों के द्वारा अधिक से अधिक अर्थ को अभिव्यक्ति
करने की क्षमता रखने वाली भाषा उन्नत, विकसित, परिमार्जित एवं मुहावरेदार कहलाती है। अर्थ की अभिव्यक्ति के साधन के रूप
में ध्वनि-शब्दों-वाक्यों का उपयोग किया जाता है। भाषा को उन्नत और परिमार्जित
करने के लिए अर्थ की योग्य अभिव्यक्ति के अनुरूप शब्दों के कलेवर को यथासंभव संकुचित
एवं संक्षिप्त कर देना चाहिए। शब्दों के संक्षिप्त कलेवर से ही भाषा को 'सुंदर', 'सरल', 'ओजपूर्ण'
तथा 'सुगठित'” आदि
विशेषणों से सुभोभित किया जाता है। आधुनिक मानव कम समय में अधिक से अधिक विचारों
और भावों को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करता है। इस कार्य में सहायता करते हैं -
संकल्पनात्मक विषय के एकल अथवा एकाधिक शब्दों वाले संक्षिप्त रूप जिन्हें 'संक्षिप्ताक्षर कहा जाता है। इस तरह संक्षिप्तक्षर से अभिप्राय है- अल्प
शब्दों अथवा अल्पाक्षर विन्यास से पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति। वही संक्षिप्ताक्षर
श्रेष्ठ होते हैं जो संक्षिप्त कलेवर वाले हों, स्पष्ट सरल और
असंदिग्ध हो ताकि लोग उसे सहज रूप से समझ सकें। शब्द विशेष के उस संक्षिप्त अथवा
आंशिक रूप से ही प र्ण शब्द में निहित विचार, भाव अथवा
संकल्पना के भावार्थ का बोध होता है।
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