लेखन में भाषा का महत्व
भाषा मानव-जीवन की प्रत्येक अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग
में आती है। भाषा का कामकाजी रूप ही प्रयोजन की पूर्ति करता है। जब भाषा का प्रयोग
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है तो भाषा स्वतः विकसित होने लगती है।
कार्यालयी-लेखन में व्यक्ति की भावनाओं से भाषा का संबंध नहीं होता,
बरन् उसके व्यावसायिक पक्ष से होता है। भावों की नहीं तथ्यों की
अभिव्यक्ति को भाषा में महत्व दिया जाता है। कार्यालयों में विविध कार्यों में काम
में आने वाली भाषा का स्वरूप भिन्न-भिन्न हो सकता है। भाषा का स्वरूप प्रयोग से
निखरता जाता है। जिस विशिष्ट क्षेत्र में भाषा का प्रयोग बढ़ता जाता है, उस क्षेत्र की वष्ठ विशिष्ट भाषा बन जाती है। कार्यालय के प्रत्येक
क्षेत्र की शब्दावली पृथक होती है जिसको 'प्रयुक्ति (रजिस्टर)
कष्ठा जाता है। कार्यालय के जिस विभाग में कार्यरत हों, उसकी
विशिष्ट शब्दावली-तत्संबंधी प्रयुक्ति - पर पडले अधिकार कर लेना चाहिए। इस दृष्टि
से भाषा का विशेष महत्व है।
कार्यालय के संदर्भ में लेखन-प्रक्रिया भिन्न हो सकती
है,
जैसे डाक विभाग में लेखन-प्रक्रिया भिन्न होगी और जीवन ब्रीमा निगम
में मिन्न। मोटे तौर पर बैंकों में प्रयुक्त होने वाली शब्दावली तथा लेखन रूपये
पैसों से संबंधित डोगा। साथ डी उधार राशि देने की प्रक्रिया से संबंधित होगा।
सरकारी उपक्रमों में अपेक्षाकृत अधिक स्वायत्तता होती है अतएव लेखन-प्रक्रिया भिन्न
हो जाएगी। आकाशवाणी-दूरदर्शन में लेखन भिन्न डोगा। फिर भी 'कार्यालयी
पद्धति' लगभग समान होती है। डाक-प्राप्ति पर आवती रजिस्टर या
डायरी में डाक के बारे में कुछ सूचनाओं को दर्ज किया जाता है और कार्रवाई के लिए
संबंधित अधीक्षक,“ अधिकारी के पास भेजा जाता है। जिस
कार्यालय में डेस्क पद्धति है तो उसके माध्यम से पत्रों का निपटारा किया जाएगा।
सट्टायक टिप्पण के साथ प्रारूप तैयार कर तत्संबंधी अधिकारी को प्रस्तुत करेगा।
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BECS184
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