मुग़ल सत्ता व बंगाल सरकार के संबंधों में एक नया मोड़ अलीवर्दी खां के शासन काल में आया। अपने पूर्वाधिकारी की तरह अलीवर्दी ने भी अपने पद की अनुशंसा मुगलदरबार से ली, परन्तु उसके शासन काल में मुगलों से विच्छेद आरम्भ हो गया और इसे बंगाल सूबे की स्वतंत्रता की शुरुआत मान सकते हैं। अलीवर्दी खां ने प्रांतीय प्रशासन के सभी प्रमुख पदों पर खुद नियुक्ति की और इसके लिये मुगल दरबार की अनुशंसा लेने की भी कोशिश नहीं की । पहले इन्हीं नियुक्तियों के जरिये बादशाह अपना नियंत्रणf स्थापित करता था। अलीवदी ने पटना, कटक और ढाका में अपनी पसंद के उप-नवाबों की नियुक्ति की । राजस्व प्रशासन की देखभाल के लिये मुतासही अमील या स्थानीय दीवान के खूप में बढ़ी संख्या में हिंदुओं को नियुक्त किया | उत्तर भारत तथा बिहार के पठानों की मदद से अलीवर्दी ने मजबूत सैन्य शक्ति स्थापित की | इसके अतिरिक्त दिल्ली भेजा जाने वाला नियमित नजराना भी बाधित हुआ, यह केन्द्रीय सत्ता की बंगाल पर ढीली पकड़ का प्रमाण था| समकालीन ज्नोतों के अनुसार जहां मुशीदकुली खां तथा शुजाऊद्दीन प्रतिवर्ष 10,000,000 रुपये बतौर नजराना भेजा करते थे, वही अलीवर्दी ने 15 वर्षों में कुल 4,000,000 से 5,000,000 रुपये तक ही भेजे । अलीवर्दी ने वार्षिक नजराना देना बंद कर दिया। सामान्यतः वार्षिक राजस्व की वसूली और प्रांतीय अधिकारियों की नियुक्ति के माध्यम से केन्द्र प्रांत पर अपना नियंत्रण रखता था। ये दोनों ही माध्यम अलीवर्दी खां के शासनकाल में समाप्त हो गये थे ।
बंगाल में
साम्राज्यवादी सत्ता का व्यवहारिक रूप से कोई दखल नहीं था। जब अलीवर्दी खां बंगाल
में अपना पैर जमाने की कोशिश कर रहा था, उस समय उसे दो
मजबूत बाहरी शक्तियों (मराठा और अफगान विद्रोह) का सामना करना पड़ा | मराठा साम्राज्य के निर्माण और धन की प्राप्ति के उद्देश्य से मराठों ने
1742 से 1751 के बीच तीन-चार बार आक्रमण किया । हर बार बंगाल पर उनके आक्रमण से
स्थानीय लोगों को माल और जान का नुकसान उठाना पड़ा। अंत में अलीवर्दी खां ने इन
हमलों से परेशान होकर मराठों से संधि कर ली। अलीवर्दी खां 1,200,000 सालाना चौथ
देने के लिये राजी हो गया तथा उड़ीसा भी मराठों को इस शर्त के साथ सौंपा कि वे कभी
अलीवर्दी के सीमा क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेंगे |
अफगान सेनापति मुस्तफा
खां ने निष्कासित अफगान फौज की मदद से अलीवर्दी पर गंभीर खतरा पैदा कर दिया | अलीवर्दी को अफगान विद्रोही सेना का भी सामना करना पड़ा। 1748 में इस फौज
ने पटना पर कब्जा कर लिया और पटना को लूट लिया, परन्तु
अलीवर्दी खां कठिन संघर्ष के बाद उन्हें हराने में सफल हुआ तथा पटना पर कब्जा कर
लिया। मराठों और अफगानों के खिलाफ लड़े गये लंबे युद्ध से अलीवर्दी खां के
राज्यकोष पर काफी प्रभाव पड़ा । शीघ्र ही इसका प्रभाव जमीदारों, पदाधिकारियों, महाजनों, व्यापारियों
और यूरोपीय कम्पनियों पर भी पड़ा |
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