हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह्ट देश की संपर्क भाषा है। सिनेमा और टेलीविजन की वजट्ठ से इसका प्रसार-द्षेत्र सारे भारत में है। इसे वे लोग भी सुनते या बोलते हैं जिनकी हिंदी मातृभाषा नहीं है। इसलिए हिंदी का संचार माध्यमों में प्रयोग करते हुए इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इसे वे लोग भी सुन रहे हैं जिनका हिंदी ज्ञान अत्यंत सामान्य स्तर का हो सकता है।
जनता की भौगोलिक, शैक्षिक और सामाजिक स्तर की भिन्नताओं को देखते हुए यष्ट जरूरी डो जाता है कि हम संधार माध्यमों में भाषा का प्रयोग रचनात्मक ढंग से करें। अगर इन माध्यमों में प्रयुक्त होने वाली भाषा सष्ठज और सरल नहीं होगी और उसके माध्यम से संदेश के संप्रेषित होने में कठिनाई आएगी तो संचार माध्यम अपनी भूमिका निभाने में कामयाब नहीं हो पाएँगे।
संचार माध्यम के स्वरूप के अनुसार भाषा का स्वरूप भी
बदलेगा। तीनों माध्यमों में एक तरष्ठ की भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इस बात
का भी ध्यान रखना होता है कि कार्यक्रम किस विधा में है और उसका विषय क्या है।
समाचार में प्रयुक्त होने वाली भाषा लेख या संपादकीय में नहीं प्रयुक्त हो सकती।
इसी प्रकार रेडियो में भी वार्ता, समाचार, फीचर, नाटक आदि में अलग-अलग तरह की भाषा का प्रयोग
होता है। यही बात टेलीविजन कार्यक्रमों पर भी लागू होती है।
संचार माध्यमों में लिखित भाषा और बोली जाने वाली भाषा
का अंतर समझना जरूरी है। रेडियो और टेलीविजन पर हमेशा उच्चरित्त भाषा का प्रयोग
डोता है |
बोली जाने वाली भाषा की विशेषताओं का उल्लेख इम कर चुके हैं। लिखित
भाषा के साथ यह्ठ सुविधा होती हैं कि अगर बात एक बार पढ़ने में समझ नहीं आती है तो
इम उसे दुबारा पढ़कर समझ सकते हैं। लेकिन रेडियो और टी.वी. पर हमें यड्ड अवसर नहीं
मिलत्ता | हमें बात को एक बार में ही पढ़कर समझना होता है।
इसके लिए जरूरी है कि इन माध्यमों में प्रयुक्त होने बाली भाषा सरल और
सहज-संप्रेष्य हो। वाक्य लंबे न हों। उन शब्दों का प्रयोग करने से बचें जिनका
प्रयोग आम तौर पर उच्चरित भाषा में नहीं किया जाता। बोलते हुए उच्चारण की शुद्धता
पर खास ध्यान रखें। अशुद्ध उच्चारण से सुनने वालों को बात समझने में कठिनाई महसूस
होती है, साथ ही बोलने वाले का प्रभाव भी अच्छा नहीं पड़ता।
भाषा की शुद्धता का ध्यान हमें मुद्रित माध्यमों में भी रखना चाहिए। मात्रा और
वर्तनी संबंधी गलतियों से पाठकों पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। वे यह समझने लगते
हैं कि जो भाषा की शुद्धता पर ध्यान नहीं देता, वह्ठ अपनी बातों
के प्रति भी गंभीर नहीं होता।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box