प्रकार्य के आधार पर भाषा के प्रमुख रूप -
संपूरक भाषा - निजी ज्ञान की वृद्धि के लिए द्वितीय भाषा प्रयोग करना सीखना। यह पुस्तकालय भाषा होती है जिसका सक्रिय प्रयोग नहीं होता। राजनयिकों आदि द्वारा सीमित प्रयोग के लिए भी यह भाषा सीखी जाती है।
परिपूरक भाषा - सामाजिक प्रयोजनों की पूर्ति के लिए समुदाय में प्रचलित दूसरी भाषा को जानना आवश्यक है| मातृभाषा के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर परिपूरक के रूप में प्रयुक्त भाषा; जैसे - भारत में हिन्दी या अपनी मातृभाषा के साथ अंग्रेजी |
सहायक भाषा - व्यक्ति अपने समुदाय में दूसरी भाषा का ज्ञान अपने ज्ञान की सहायक भाषा के रूप में करता है; जैसे -- हिन्दी और संस्कृत | हिन्दी का प्रयोग करते हुए व्यक्ति को कभी संस्कृत की भी सहायता लेनी पड़ती है।
समतुल्य भाषा -
जब कोई व्यक्ति दूसरी भाषा में भी समतुल्य ज्ञान प्राप्त कर धीरे-धीरे उस भाषा का
भी उन सभी सामाजिक संदर्भों में प्रयोग करने लगे जिनमें वह मातृभाषा का करता रहा
है उनके लिए समतुल्य भाषा हो गई है। इसमें दोनों भाषाओं पर समान अधिकार की अपेक्षा
होती है;
जैसे - भारत में हिन्दीतर भाषी अपनी मातृभाषा के स्थान पर हिन्दी का
प्रयोग करने लगते हैं। इसलिए अमेरिका में विभिन्न देशों के बसे लोग अपनी-अपनी
मातृभाषा छोड़कर अंग्रेजी का प्रयोग करने लगे हैं।
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