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'पारम्परिक मूल ज्ञान आपदा प्रबंधन के विभिन्‍न चरणों में एक दृढ़ भूमिका निभाता है। चर्चा कीजिए।

पारम्परिक-मूल ज्ञान अपने आप में पारम्परिक व स्थानीय ज्ञान है, जो एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पुरूषों एवं महिलाओं की विशिष्ट स्थितियों के अंतर्गत देशज विकसित होता है। "पारम्परिक-मूल ज्ञान" शब्द इस विचार से लिया गया है कि भूतपूर्व अनुभव के आधार पर स्थानीय समुदाय को अपनी उपबस्ती (स्थिति)के इतिहास का ज्ञान होता है। बरकेस ने पारम्परिक-मूल ज्ञान को परिभाषित किया है कि उनके अनुसार “जीवित जगत (मानव सहित) का एक-दूसरे और पर्यावरण के अंतर्संबंधों के संचित ज्ञान का भंडार, अभ्यास और विश्वास, अपनाई गई प्रक्रिया द्वारा विकसित होना और सांस्कृतिक संचरण द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को देते जाना।

   पारम्परिक-मूल ज्ञान को पारम्परिक-मूल ज्ञान या स्थानीय ज्ञान भी कहा जा सकता है। यूनेस्को ने पारम्पर्कि-मूल ज्ञान को एक ज्ञान के संथयी भण्डार, जानकारी, अभ्यास और प्रदर्शन के रूप में वर्णित किया है, जिसे प्राकृतिक पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया के विस्तारित इतिहास के साथ लोगों के द्वारा बनाया और विकसित किया गया है. जबकि पारम्परिक स्थान और पारम्परिक लोगों से जुड़ा हुआ है या सम्बन्धित है। विश्व बैंक रिपोर्ट में 'पारम्परिक-मूल ज्ञान को ऐसे पारम्परिक या स्थानीय ज्ञान के रूप में संदर्भित किया गया है, जिसका विकास ज्ञान और कौशल के विशाल भंडार के संदर्भ में औपचारिक शिक्षा तंत्र के बाहर हुआ हो। पारम्परिक-मूल ज्ञान सस्कृति में अंतःस्थापित होते हैं और किसी भी अवर्थिति या समाज में अपने आपमें अनूठे (एकल) नहीं होते हैं। निर्धन लोगों के जीवन के लिए पारम्परिक-मूल झान महत्वपूर्ण होता है। ये खाद्य सुरक्षा, मानव और पशु स्वास्थ्य, शिक्षा और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में समुदाय के निर्णय निर्माण का आधार होते हैं। फ्लेवियर क॑ अनुसार 'पारम्परिक- मूल ज्ञान समाज का सूचना आधार होते है जो संचार और निर्णय निर्माण को सुसाध्य करते हैं। पारम्परिक सूचना तंत्र गतिक हैं, जो आन्तरिक रचनात्मकता और प्रयोग के साथ-साथ बाहरी तंत्र से संपर्क करके सत्तत्‌ प्रभावित होते रहते हैँ। पारम्परिक-मूल ज्ञान की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि पारम्परिक- मूल ज्ञान न केवल समुदाय के पुराने /भूतपूर्य अनुभयों से सम्बन्धित है, यरन्‌ क्या करना है और क्‍या नहीं करना है, इसके लिए भी समुद की सहायता करता है। आई.आई.आर. आर. के अनुसार देशज वह है "ज्ञान है जिसे दिए गए समुदाय के लोगें ने समय के साथ विकसित किया है और सतत्‌ विकसित होते हैं। यह अनुभव पर आधारित होते हैं, अधिकतर शताब्दियों से प्रयोग द्वारा प्रमाणित होते है, स्थानीय संस्कृति और परयांवरण के अनंकूल होते हैं, गतिक और परिवर्तित होते रहते हैं।

   राजीब शॉ ने पारम्परिक-मूल ज्ञान की निम्न विशेषताएँ बताई हैं जो हैं - स्थानीय सीमा के अंदर; विशिष्ट क्षेत्र एयं समुदायों के लिए पारम्परिक; संस्कृति एवं संदर्भ विशिष्ट; अनौपचारिक ज्ञान; मौखिक संचरण; सामान्यतः प्रलेखित न होना; गतिक यह हमेशा रयाभादिक है, कि स्थानीय लोग अपनी भूमि के पर्यावरण को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। मूल पारम्परिक समझदारी से उनके पास (अनूठी) योग्यता होती हैं कि प्राकृतिक आपदाएँ जो उनकी भूमि पर प्रदर्शित होती हैं, उनकी सूचना को एकत्रित और सुरक्षित रख सकें। इसलिए, उनकी स्थिति को अच्छा बनाने के लिए उसे स्थानीय लोगों के ऊपर केन्द्रित होना धाहिए। आपदा जोखिम न्यूनीकरण (एस.एफ.डी,आर. आर) 2015-20% के लिए ढाँचा यह कहता है कि भूमण्डलीय एवं प्रादेशिक स्तर पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है बहु-आपदा उपागम और सम्मिलित जोखिम सूचित निर्णय निर्माण जो खुले विचार विमर्श और मिन्‍न आँकड़ों के प्रसार पर निर्भर हो, इसमें जेंडर, आयु और विकलांगता सम्मिलित हो, इसके साथ ही साथ यह आसानी से उपलब्ध, आधुनिकतम, बोधगम्य, विज्ञान आधारित असंवेदनशील जोखिम सूचना, पारम्परिक-मूल ज्ञान के द्वारा पूरक हो। वर्तमान संदर्भ में पारम्परिक-मूल ज्ञान को वैज्ञानिक विशेषज्ञता के साथ जोड़ना अधिक महत्वपूर्ण है। पारम्परिक-मूल ज्ञान को जानना या प्रलेखित (लेख निर्देशन) करना तब तक प्रमायी नहीं है, जब तक कि उसे आपदा जोखिम न्यूनीकरण गतिविधियों में सम्मिलित न किया जाएँ। यह निचले स्तर पर लोगों की भागीदारी का प्रवेश बिन्दु है। एस.एफ,डी,आर, आर. रिपोर्ट सुझाव देती है कि राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर आपदा जोखिम को समझने के लिए, यह आवश्यक है कि पारम्परिक-मूल, पारम्परिक-मूल और स्थानीय ज्ञान तथा अभ्यास को प्रयोग निश्चित किया जाए, जैसा उपयुक्त हो, आपदा जोखिम मूल्यांकन में वैज्ञानिक ज्ञान को समाहित किया जाए और अनुप्रस्थ-अवखंडीय उपागम के साथ विशिष्ट अवखंडों की नीतियों, रणनीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों के विकास को लागू करना, जो स्थानीयता और संदर्भ के अनुकूल होना चाहिए।

   पैन अमेरिकन स्वास्थ्य संगठन आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना में निम्नलिखित बिन्दुओं को शामिल करने का सुझाव देता हैः

  • ·         सरकारी आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना के विकास ब लागू करने में पारम्परिक व्यक्तियों के निवेश और उनके सांस्कृतिक और पर्यावरणीय ज्ञान को सुनिश्चित करना।
  • ·         पारम्परिक परिदृश्य को सरकारी आपदा थोजना के साथ एकीकृत करना, जो यह विचार करे कि कैसे बढ़ते आपदा जोखिम में जलवायु परिवर्तन सहयोग कर रहा है।
  • ·         विचार करें कि कैसे संरचानात्मक विकास और पर्यावरण परिवर्तन पारम्परिक-मूल व्यक्तियों की आपदा संवेदनशीलता को प्रभावित करता है।
  • ·         उनके भाषा और सांस्कृतिक महत्ता को सुरक्षित करने की दृष्टि से पूर्व चेतावनी तंत्र की अभिकल्पना और लागू करने में पारम्परिक व्यक्तियों का सहयोग लेना।
  • ·         समस्त समुदाय की भागीदारी के साथ, उनके अपने समुदाय स्तर पर तैयारी और जोखिम न्यूनीकरण योजना और रणनीतियों के साथ जिसमें जीवन सुरक्षित, जीवन निर्वाह और संकटपूर्ण संचरना के लिए अभियोज्य संभाव्यता योजना हो, व विकास के लिए पारम्परिक समूहों को बढ़ावा देना।

पारम्परिक-मूल ज्ञान के प्रकार

पारम्परिक-मूल ज्ञान को तीन निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  • 1.  तकनीकी / प्रौद्योगिकीय ज्ञान
  • 2.  आर्थिक ज्ञान और
  • 3.  पर्यावरणीय ज्ञान

1. तकनीकी / प्रौद्योगिकीय ज्ञान

पारम्परिक-मूल व्यक्ति आपदा जोखिम न्यूनीकरण से सम्बन्धित कुछ तथ्यों के लिए कई वर्षों से अर्जित तकनीकी ज्ञान का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, समुदाय का पारम्परिक-मूल अभ्यास बाढ़ जलमनन क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों और पर्वतीय प्रदेशों में घर व सरचना निर्माण के संदर्भ में अभी मी विद्यमान है। उदाहरण के लिए, सन्‌ 1991 के उत्तरकाशी भूकंप के दौरान, यद्यपि नुकसान दृष्टिगोधर था, आपदा के उपरांत भी पारम्परिक-मूल संरचना याले घरों में से अधिकतर सुरक्षित रहे। इसी प्रकार कश्मीर घाटी भी भूकंप प्रतिरोधक रचना कार्यों के लिए जाना जाता है। जैसे ताक तंत्र और ढ़ाजी दीवारी तंत्र। इस प्रकार के घर सन्‌ 2005 के कश्मीर भूकंप में सुरक्षित रहे। इस प्रकार के स्थानीय तकनीकी ज्ञान को सम्मिलित करके और आपदा तैयारी में स्थानीय सदस्यों की भागीदारी को बढ़ावा देकर सतत॒ता को सुधारा जा सकता है।

2. आर्थिक ज्ञान

पारम्परिक-मूल ज्ञान का एक अन्य प्रकार आर्थिक ज्ञान है, जिसे समुदाय के द्वारा संकट के समय प्रयोग किया जाता है। अल्पकालिक आधार पर समस्याओं का सामना करने के लिए व्यक्ति आर्थिक विचारों को लेकर आते हैं। उदाहरण के लिए, समुदाय के द्वारा आपदा के दौरान और उपरांत, दोनों चरणों में स्थानीय उपलब्ध संसाधनों द्वारा अस्थायी / स्थायी घरों का निर्माण एक उपयुक्त उदाहरण है। इस प्रकार समुदाय के द्वारा स्थानीय संसाधनों का प्रयोग करके न्यूनतम लागत रणनीति योजना बनाई जाती है। इसी प्रकार संकट की स्थिति से बाहर आने के लिए समुदाय अपने आपको वैकल्पिक जीदन निर्वाह के अनुकूल बना लेता है।

3. पर्यावरणीय ज्ञान

पर्यावरणीय ज्ञान समुदाय के अनुभव से जुड़ा है. जो अल्प या क्षण भर के अनुभव पर आधारित है, जिसको वे पर्यावरण या आसपास से प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए, चक्रवात या बाढ़ के दौरान अनुमवों के आधार पर ज्ञान प्राप्त होता है। जल या बादल के रंग के आधार पर व्यक्ति अनुमान लगाते हैं और समुदाय के सदस्यों को चेतावनी देते थे। इसकी सहायता से समुदाय के सदस्यों को तैयारी के उपायों में सहायता मिलती थी जैसे भोजन. ईंघन, पेयजल और पशुओं का भोजन एकत्रित करना और सुरक्षित रखना।

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