Recents in Beach

उच्चरित भाषा के प्रकार्य को स्पस्ट कीजिये |

 उच्चरित भाषा के प्रकार्य

सामाजिक संप्रेषण की दृष्टि से भाषा का उच्चरित रूप अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। प्रसिद्ध आधुनिक भाषा वैज्ञानिक सस्यूर के बाद से पिछले कुछ सालों तक भाषा अध्येताओं ने केवल उच्चरित्त भाषा पर ही बल एवं ध्यान दिया। बोलचाल की भाषा, वाक्‌ या उच्चरित्त भाषा को महत्व देने के पीछे उसके प्रकार्य ही प्रमुख कारण रहे हैं| मानव के संप्रेषण-व्यापार में उच्चरित भाषा ही मूलभूत भाषा रूप होती है। किसी भी भाषा-समाज में भाषा बोलने वालों की संख्या भाषा लिखने या पढ़ने वालों की तुलना में कहीं अधिक होती है। अत्त: यह भी कहा जा सकता है कि उच्चरित भाषा रूप का भौगोलिक क्षेत्र विस्तीर्ण होता है और इसके विविध रूप भाषा-समाज में व्यवह्गवत मिलते हैं। आज हिंदी भाषा को ही अगर देखें तो वह पूरे भारत में अलग-अलग तरह से बोली जाती है। अपनी अधीनस्थ ब्रोलियों के बीच या बोली-द्षेत्र में उसका क्षेत्रीय रूप' प्रचलित है, भारतीय भाषाओं के बीच उसका संपर्क भाषा' के रूप में मिश्रित रूप प्रथलित है जैसे बंबदया हिंदी, कलकतिया हिंदी, हैदराबादी हिंदी आदि। इसके साथ ही उसकी सामाजिक शैलियाँ भी प्रचलित हैं जो वर्ग भेद, पद भेद, शिक्षा भेद या कहें सामाजिक स्तर भेद के कारण उत्पन्न डोती हैं। इस प्रकार उच्चरित भाषा के अनेक रूप समाज में प्रयुक्त मिलते हैं जिनके माध्यम से भाषा समुदाय के सदस्य अपनी संप्रेषणपरक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

 

हमें यड् भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी क्षेत्र विशेष के किसी सामाजिक वर्ग की बोली ही कुछ कारणों से सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित कर के 'मानक' के रूप में स्वीकृत हो जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि 'उच्चरित भाषा ही भाषा का आधार होती है अथवा उच्चरित भाषा से ही 'भाषा का आदर्श रूप' विकसित होता है। मानक भाषा (लिखित भाषा) में उच्चरित भाषा की अपेक्षा भाषा वैविध्य कम मिलता है, उसमें क्रमशः विकल्पन (एक्ाधणा) की प्रवृत्ति कम होने लगती है। उच्चरित भाषा के समाज में कितने रूप भिन्‍न-भिन्‍न सामाजिक प्रकार्यों की पूर्ति करते हैं

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close