बोलचाल की भाषा और लिखित भाषा का अंतर उस समय और भी स्पष्ट हो जाता है जब बोलचाल की भाषा की ध्वनियों का लिखित भाषा में लिप्यंकन करने का प्रयास किया जाता है। यों तो उच्चरित भाषा की तमाम ध्वन्यात्मक विशेषताओं को लिपिबद्ध करना असंभव कार्य है। उच्चरित भाषा में कुछ ऐसी रचनाएँ डोती हैं जिनको लेखन में शब्दों में लिख कर ही व्यक्त किया जा सकता है। आपने नाटक, कह्ठानी, उपन्यास में देखा होगा कि उच्चरितत भाषा की इन चेष्टाओं को 'वह रोते हुए आया, 'वह जोर से हँसने लगा' के रूप में लिखकर व्यक्त किया जाता है। लेकिन इस प्रकार की सभी क्रियाओं या चेष्टाओं में किस-किस प्रकार की ध्वन्यात्मक विशेषताएँ निहित हैं, उन्हें लिखित शब्दों में व्यक्त कर पाना बड़ा ही कठिन कार्य होता है। उदाहरण के लिए कोई रोता है तो कैसे रोता है- धीरे धीरे, जोर से, चीखकर, हिचकियाँ लेकर, सुबक-सुबक कर आदि। इन्हें हम मौखिक भाषा में तो सुन सकते हैं लेकिन इन्हें लेखन के माध्यम से व्यक्त करने के लिए लिखित भाषा में कोई साधन नहीं है। रोना, हँसना के अलावा चीखना, चिल्लाना, डॉंटना, झिडकना, बड़बडाना, बुदब्ुदाना, आहें भरना, हकलाना, नाक से बोलना आदि न जाने कितनी इसी प्रकार की क्रियाएँ और चेष्टाएँ हैं जिनका संबंध एक ओर इमारी शारीरिक-मानसिक अनुक्रिया के साथ जुड़ा होता है जैसे रोने में ऑसू आना, चेहरा पीला पड़ना, आँख सूजना, नाक लाल होना तथा दूसरी ओर इनका संबंध उच्चारण पक्ष से जुड़ा होता है जैसे रोने के समय तरष्ड-तरष्द की आवाज़ों के साथ धीमी या तेज गति से रोना। इन सभी चेष्टाओं,/ अनुक्रियाओं की उच्चारणात्मक प्रकृति को यथावत् लेखन में अभिव्यक्त कर पाना कठिन होता है। फिर भी सर्जनात्मक साहित्य में मौलिकता लाने के लिए लेखक अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि उच्चरित भाषा की अधिकांश विशेषताओं को जहाँ तक संभव हो सके लिखित भाषा में व्यक्त कर सकें। इसके लिए ये लेखक तरड-तरह की लेखिकीय तकनीकें अपनाते हैं। हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यास 'करवट' में उच्चरित भाषा के वैशिष्ट्य को लिखित भाषा में कई विधि से प्रकट करने का प्रयत्न किया है। कुछ उदाष्टरण देखिए-
- · घबरा कर झल्ला उठे (मागी किसके साथ है..... उसे भी आज ही भागना था)
- ·
आँखे निकाल के पूछा (जवान
था?)
- · गिड़गिड़ा कर बोले (दो दिन की मुहलत तो दिलवा दें साहब)
- ·
धीरे से पूछा (सुना है
साहब बहादुर का कोई खत बादशाह के पास पहुँचा है?)
- · स्वर को मीठा बनाते हुए बोला (अरे जियो भैयाजी.......)
- ·
तुनक कर कहा (जाओ,
हम तुमसे बात नहीं करते |)
- · झल्लाहट भरे स्वर में बोले (मुझे यह रकम नहीं चाहिए।)
- ·
बिलखती आवाज में चाची बोली
(हाँ भइया, कबहूँ मूडठ न पिरावा। पूजा में बैठे-बैठे
बैकुंठ चले गये।)
- · प्रसन्नता से खिलकर बोली (बंसीघर मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। मेरे साथ एक गिलास बियर पियो)
- · निसांस छोडकर कहा (जाना ही पड़े गा.......)
- · उत्तेजित होकर कहा (मैं उस घोखेबाज औरत का खून कर दूँगा।)
- ·
डपट कर कहा (उधर ही बैठे
रहो। चुपचाप। बोलना कुछ नहीं, समझे?)
- ·
परेशान होकर बोला (क-क-कौन
है वह?
मैं कत्ल के बारे में कुछ नहीं जानता।)
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