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भारतीय भाषाओं की लिपियों की मूलभूत एकता को स्पष्ट कीजिए |

भारतीय भाषाओं की मूलभूत एकता-विश्व में 10 भाषा-परिवार हैं, जिनमें से चार भाषा-परिवार की भाषाएं भारत में व्यबहत होती हैं। एमेन्यू नामक एक भाषा वैज्ञानिक ने 'भारत : एक भाषिक क्षेत्र' नामक अपने लेख में स्पष्ट किया हैं कि भारतीय भाषा-परिवारों में कई धिन्‍नताओं के बावजूद साम्यता भी मिलती है।

     भाषिक भिलता के होते हुए भी सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में ध्वनि, लिपि, उच्चारण, याक्य, संरचना आदिस्तरों पर समानता देखने को मिलती है. इसीलिए हमें कभी-कभी तेलुगु या मलयालम हिंदी को अपेक्षा अधिक संस्कृतमयी लगती है।

     दो अलग-अलग परिवार को भाषा में इतना अधिक अंतर होता है कि एक भाषा बोलने वाला दूसरी भाषा बोलने वालों को भाषा समझ नहीं पाता जैसे कि चीनीभाषी की भाषा एक भारतोय भाषा बोलने वाला बिल्कुल नहीं समझता, किंतु भारतीय भाषाओं के साथ ऐसा नहीं

है। इन भाषाओं में कई समानताएं मिलतो हैं, जो इन्हें परस्पर बोध को भाषा बना देती हैं। उदाहरणत:, किसी तमिलभाषी को भाषा को हिंदीभाषी अक्षरशः भले न समझ पाए, लेकिन इतना तो समझ हो सकता है कि किस विषय पर चर्चा हो रही है।

     भारत में दो प्रमुख भाषा-परिवार हैं-(i) भारोपीय भाषा परिवार को भारतीय आर्य भाषाएं तथा (७ द्रविड भाषा परियार। आर्य भाषाओं में हिंदी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, बंगला, असमिया, उड़िया भाषाएं तथा द्रविड भाषाओं में तमिल, मलयालम, कललनड़ आदि भाषाएं सम्मिलित हैं।

     सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश की साम्यता के कारण आर्य भाषाओं और द्रविड़ भाषाओं ने परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित किया, जिसकी वजह से इन भाषाओं में एकता का सूत्रपात हुआ। और यह एकता केबल शाब्दिक स्तर पर नहीं मिलती है, बल्कि उच्चारण आदि कई मूलभूत स्तरों पर भी मिलतो है।

ध्वनि और उच्चारण के स्तर पर समानता

भारतोय भाषाओं में ध्वनि संबंधी साम्यता इस प्रकार हैं-

(i) स्वरों के हस्व, दीर्घ के क्रम की व्यवस्था है। इसको तुलना में भारोपीय परिवार की यूरोपीय (अंग्रेजी, रूसी आदि) भाषाओं में स्वर की मात्रा शब्द में स्वर के परिवेश के आधार पर बदलतो है।

(ii) भारतोय भाषाओं में व्यंजनों का क्रम वैज्ञानिक है, जबकि यूरोपीय भाषाओं में रोमन वर्णमाला की ध्वनियों का कोई क्रम नहीं है।

(iii)  , , ण का उच्चारण भारतीय भाषाओं की विशेषता है। ट-वर्ग की ध्वनियाँ द्रविड़, मुंडा परिवार में भी मिलती हैं, लेकिन अन्य भारोपीय (यूरोपीय) भाषा-परिवार में '' वर्ग का उच्चारण नहीं है।

(iv) महाप्राण ध्वनियाँ भारतीय भाषाओं की विशेषता है। संस्कृत तथा द्रविड़ भाषाओं में यह विशेषता सुरक्षित है।

(v) भारतीय भाषाओं में ड.. ज, , , ण पाँच नासिक्य व्यंजन मिलते हैं, जबकि यूरोपीय भाषाओं में दो हो नासिक्य व्यंजन न और पर मिलते हैं।

लिपि के स्तर पर समानता

भारत में उर्दू, सिंधी और कश्मीरी को छोड़कर कुल नौ लिपियाँ हैं, जो इस प्रकार हैं-

1. देवनागरी लिपि (हिंदी, मराठी और नेपाली भाषाओं की लिपि),

2, तेलुगु की लिपि,

3. तमिल को लिपि,

4. मलयालम की लिपि,

5. गुजराती की लिपि.

6. पंजाबी की लिपि (गुरुमुखी).

7, कन्‍नडु की लिपि,

8. बंगला की लिपि (असमी और मणिपुरी के लिए भी व्यवहृत)

9, उड़िया की लिपि।

(ii) ग्रेमन की तुलना में भारतीय भाषाओं की लिपियां आक्षरिक हैं अर्थात व्यंजन के बाद स्वर मात्रा के रूप में आता है, दो या तोन व्यंजन एक ही साथ उच्चरित हों तो उनका सम्मिलित रूप बनता है, जैसे- चू + च - च्व, द्‌ * य - झ आदि। एक ही संयुक्त वर्ण में एक ही साथ कई ध्वनियां उच्चरित हो सकती हैं

(iii) अंग्रेजी में अनुस्वार के लिए वर्ण | का प्रयोग होता है अगर बाद के अक्षर ४. ०.। हों। इसो तरह भारतीय भाषाओं में अगर शब्द में बाद का वर्ण स्पर्श हो तो अनुस्वार लगाकर उस शब्द (वर्ग) को नासिक्य व्यंजन बनाया जा सकता है, जैसे- अंत,, गंगा, गंगा

शब्द स्तर पर भारतीय भाषाओं में समानता

शब्द-स्तर पर भी भारतीय भाषाओं में समानता मिलती हैं। हिंदी-भाषा में प्रमुखत: चार ख्लोतों से शब्दों का आगमन हुआ है, जिन्होंने हिंदी भाषा को एक व्यापक रूप तो दिया हो है, साथ ही उनकी शाब्दिक समानता को भी स्पष्ट किया है। चारों म्रोतों को व्याख्या इस प्रकार है-

(i) तत्सम शब्द-जो शब्द संस्कृत भाषा से हिंदी-भाषा में लाए गए, उनको तत्सम कहा गया

(ii) तद्भव- संस्कृत के वे शब्द जो परिवर्तन के बाद आधुनिक भाषाओं में अपनाए गए, तद्भव कहलाते हैं |

(iii) देशज शब्य-वस्तुतः ये शब्द जनसाधारण के प्रयोग से बने (देशज- देश से निकला हुआ)

(iv) अन्य स्रोतों से आए शब्द-अन्य स्रोतों से भी हिंदी में हजारों शब्द लिए गए हैं अर्थात अन्य दूसरी भाषाओं से भी हिंदी में शब्द आए हैं या लाए गए हैं, जिन्हें हम तोन समूह में विभक्‍त कर सकते हैं-

(क ) भारतीय भाषाओं से आए शब्द-अगरु, चंदन, मुख, कठिन, मीन आदि द्रविड़ भाषाओं से लिए गए हैं, तांबूल, श्रृंगार, आकुल आदि (मुंडा भाषाओं से), उपन्यास, गल्प, धन्यवाद (बंगला से), वाइमय, लागू, प्रगति (मशठी से), हड़ताल (गुजराती), छोले (पंजाबी से)।

(ख) अरबी-फारसी आदि के शब्द-हिंदी भाषा में अरबी-फारसी आदि भाषाओं के शब्द सहजता से व्यबहृत किए जाते हैं। मुगलों के सम्रय से हो इन भाषाओं के शब्दों का व्यवहार हिंदी में किया जा रहा है-

अरबी के शब्द-इंतज़ाम, रहम, मुल्क, अदब, हुक्म, जिस्म, अक्ल, मशहूर, इन्कलाब, किताब।

'फारसी के शब्द-चश्मा, बर्फ, सफेद, सितारा, आदमी, औरत, लाल, ख़रीदना, ख़ुदा, खुद, फूसल, पाजामा आदि।

तुर्की के शब्द-बहादुर, चाकू, कैंची, तोष, दारोगा, चेचक, बीबी. गनीमत, बावर्ची, काबू, तमगा, चोगा, कुर्क आदि।

(ग) विदेशी शब्द-भारत में समय-समय पर विदेशी आक्रमण के कारण, विदेशियों का आना-जाना एक लंबे समय तक होता रहा। कभी पुर्तनाली, कभी डच, कभी फ्रांसीसी और कभी अंग्रेज भारत में अपनी सत्ता स्थापित करते रहे। इन लोगों के साथ संपर्क के कारण भारतीय भाषाओं में इन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग होने लगा।

वाक्य संरचना के स्तर पर समानता

किसी भो भाषा का सबसे दुरूह (जटिल) पक्ष उसका वाक्य-विन्यास (संरचना) होता है। भारतीय भाषाओं को मूलभूत एकता को उनकी वाक्य-संरचना और भी मजबूत करती है। भारतीय भाषाओं को वाक्य-संरचना की समानता को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

(i) वाक्य में पदक्रम की समानता-भारतीय भाषाओं में कर्ता-कर्म-क्रिया का क्रम है जबकि अंग्रेजी भाषा का पदक्रम कर्ता-क्रिया-कर्म का है। भारतीय भाषा में कश्मीरी भाषा में यही क्रम है-कर्ता-कर्म-क्रिया। द्रविड़ तथा मुंडा भाषाओं में भी यहो क्रम है।

(ii) पदबंध के भीतर शब्दों का क्रम-हिंदी में हमेशा विशेषण संज्ञा के पूर्व आवा है. पर कई भाषाओं में इनका उलट क्रम भी होता है। पदबंध क्रम को तीन प्रकार से समझा जा सकता है-

(क) परसर्ग कर्म-हिंदी में संज्ञा के बाद कारक चिह्न या प्रत्यय को लगाया जाता है, इसलिए इन्हें परसर्ग कहते हैं-घर में, घर को, घर की तरफ।

     भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाओं में परसर्ग तथा यूरोपीय भाषाओं तथा फारसी में पूर्वसर्ग का प्रयोग होता है। द्रविड़ तथा तिब्बती-बर्मी भाषाओं सभी में परसर्ग का प्रयोग होता है।

() सारी भारतीय भाषाओं में विशेषण संज्ञा के पहले आता है, जैसे-भली लड़को, बड़ा आदमी आदि।

(ग) क्रिया-रचना का शब्द-क्रम-हिंदी भाषा में मुख्य क्रिया पहले आती है तथा सहायक क्रियाएं बाद में, जबकि अंग्रेजी में ठीक इसके विपरीत होता है-

किया जा रहा है (मुख्य क्रिया-कर )

Has been done (मुख्य क्रिया-do)

(iii) बचन, संस्कृत में तीन बचन होते हैं-एकबचन, ट्विववन और बहुबचन। पर अन्य भारतीय भाषाओं में दो ही बचन हैं-एकबचन और बहुबचन।

(iv) वाक्य-संरचना -इस स्तर पर जहाँ अंग्रेजी में कर्ता कारक (मैं) का प्रयोग होता है वहीं भारतीय भाषाओं में (हिंदी) संप्रदान कारक 'मुझे' का प्रयोग होता है. जैसे-

अंग्रेजी में-I have fever, I feel cold.

हिंदी में-मुझे बुखार है, मुझे ठंड लग रही है।

अर्थात यूरोपीय भाषाओं में कर्ता I' की तथा भारतोय भाषाओं में 'संप्रदान “मुझे” की प्रवृत्ति हैं।

(v) रंजक क्रिया-'कर' मूल क्रिया है तथा रंजक क्रियाएं हैं- कर लेना, कर डालना, कर देना। भारतीय भाषाओं की एक मुख्य विशेषता है 'रंजक क्रिया सभी भारतीय भाषाओं में यह क्रिया है जबकि यूरोपीय भाषाओं में यह क्रिया नहीं मिलती।

(vi) पूर्वकालिक कृदंत “कर' का प्रयोग-वाक्य-संरचना में “कर” का प्रयोग भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में नहीं, सिर्फ भारतीय भाषाओं में ही मिलता है-

मैं उठकर आया- I got up and came out.

तुम जाकर पता लगाओ- You go and find out.

(vii) प्रेरणार्थक क्रिया-आर्य भाषाओं तथा द्रविड़ भाषाओं में लगभग समान रूप से प्रेरणार्थक क्रिया को रचना होती है, पर अंग्रेजी भाषा में यह क्रिया अलग होती है,

जैसे-. हिंदी    तेलुगु    अंग्रेजी

     करना     चेचु    to do

(viii) वाक्य-संरचना संबंधी कुछ असमान तत्त्व भी भारतीय भाषाओं में मिलते हैं। हिंदी में वाच्य का सामान्य प्रयोग, योजक तत्त्व जो, जहाँ, जैसे आदि से वाक्य-रचना की सहज प्रवृत्ति, उपवाक्य को 'कि' से जोड़ना आदि तत्त्व मिलते हैं, जो अंग्रेजी में भी समान रूप से मिलते हैं, पर द्रविड़ भाषाओं में इन तीनों तत्त्वों का या तो अभाव है या सहज प्रयोग नहीं है। इन भाषाओं में इत्यर्थक शब्द से वाक्य और उपवाक्य को जोड़ा जाता है-

कनन्‍ड़-यावाग रजा एन्दु अवनु केल्दनु

हिंदी-कब छुट्टी यों उसने पूछा

आधुनिक द्रविड़ भाषाओं में 'जो-वह”, 'जब-तब' के लिए 'यावन-अवन', 'एन्गे-अंगे' (जहाँ-वहाँ) (तमिल), एप्पुडु-अप्पुडु (जब-तब) (तेलगृ) आदि योजकों का प्रयोग होने लगा है। द्रविड़ भाषाओं में आधुनिक आर्य भाषाओं (साथ में, अंग्रेजी भाषा के प्रभाव स्वरूप) के कारण भाषिक संरचना के क्षेत्र में समानता आ रही है।

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