सरकारी पत्राचार में शासनादेश और सरकारी पत्र के अलावा, अर्ध-सरकारी पत्रों का भी अपना विशेष स्थान और महत्व है। इस प्रकार का पत्राचार किसी एक कार्यालय के अधिकारी के द्वारा किसी अन्य कार्यालय के अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से संबोधित करके लिखा जाता है। अधिकारियों के बीच का यह पत्र-व्यवहार सरकारी कामकाज के सिलसिले में ही किया जाता है यानी निजी संदर्भों से जुड़ा नहीं होता। चूँकि यह सरकारी कामकाज से संबंधित और व्यक्तिगत रूप से संबोधित पत्र होता है, इसलिए इसे 'अर्ध-सरकारी' कहा जाता है। इसके अलावा, इसे 'अर्ध-शासकीय पत्र' भी कहा जाता है।
किसी विशेष मामले,” नियम ,“सरकारी आदेश या पत्राचार की ओर किसी अधिकारी का
ध्यान व्यक्तिगत रूप से आकर्षित किया जाता है, तब प्रायः
अर्ध-सरकारी पत्र लिखा जाता है। अर्ध-सरकारी पत्र की श्रेणी में किसी लंबित मामले
को जल्दी निपटाने के लिए फिर से निवेदन करने, रुके हुए कार्य
को शीघ्र पूरा कराने के लिए ध्यान आकर्षित करने या फिर स्पष्टीकरण आदि विषय के
संदर्भ में किए जाने वाला पत्राचार आता है। कई बार सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए
भी कोई अधिकारी, किसी अन्य अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से
ध्यान आकर्षित कराते हुए अर्ध-सरकारी पत्र लिखते हैं।
'अर्ध-सरकारी पत्र' में निर्धारित क्रियाविधि और शासकीय औषपचारिकता का पालन करने की आवश्यकता
नहीं होती है। यह अनौपचारिक शैली में लिखा जाता है। लेकिन कभी-कभी इस प्रकार के
पत्र को औपचारिक शैली में भी लिखा जाता है। अतः पत्र की भाषा एवं संबोधन में
व्यक्तिगत संस्पर्श, आत्मीयता आदि का समावेश पत्र को अनौपचारिक
शैली से संपन्न कर देता है। वैसे भी, व्यक्तिगत ढंग से लिखे
पत्र का प्राप्तकर्ता पर अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए पत्र
लिखने वाला अधिकारी यह प्रयास करता है कि इस प्रकार के पत्रों में आत्मीयता का पुट
बना रहे और अधिकारी उनपर विशेष ध्यान देकर, जहाँ तक हो सके,
मामला निपटे,”आगे की दिशा में बढ़े या फिर
कार्य संपन्न हो अथवा उसमें प्रगति हो। पत्र के जरिए आत्मीयता के मूल परस्पर
सहयोग की कामना की अभिव्यक्ति की हुई होती है।
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