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शतरंज की खिलाड़ी' कहानी का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

 कहानी का सार-कहानी अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय की है। इस समय लखनऊ विलासिता में डूबा हुआ था। मिरजा सज्जाद अली तथा मीर रौशन अली उच्च वर्गीय जागीरदार थे, परन्तु इनका सारा समय शतरंज की बाजी में ही बीतता। अधिकतर बाजी मिरजा के यहाँ ही होती थी, जिससे मिरजा साहब की बेगम चिड॒ती थी। एक दिन बेगम साहिबा ने सिर दर्द के बहाने 'शतरंज के खिलाडी' कहानी का मूल उद्देश्य क्या है? यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है। यदि हम शीर्षक के आधार पर विश्लेषण करें, तो कहानी में शतरंज के दो खिलाडियों का चित्र खींचा गया है, परन्तु कहानी का कथ्य केवल इतना ही नहीं है। ये खिलाड़ी अपने समय के समाज को रूपांतरित करते हैं। इन खिलाडियों को सामने लाने से पहले कहानीकार ने नवाब वाजिंद अली शाह के समय के लखनऊ के विलासी और निष्क्रिय सामाजिक जीवन की तस्वीर प्रस्तुत की हे। कहानी के प्रारंभ में जो वातावरण चित्रित किया गया है, उससे पता चलता है कि शतरंज का खेल मात्र खेल नहीं हे, बल्कि यह अपने देशकाल की गतिविधियों ओर मानसिकता को भी प्रदर्शित कर रहा है। शतरंज के खेल को हमारे समाज में अच्छा नहीं माना जाता। इसे निकम्मों का खेल माना जाता हे, परन्तु वाजिद अली शाह के समय तो सभी इस विलासी खेल की बाजियों में डूबे थे, इसका अर्थ है कि सम्पूर्ण समाज अपने दायित्व तथा कर्त्तव्यों से विमुख होकर पतनशील जीवन-सुख में लिप्त था। लोगों में समाज के लिए बलिदान की भावना नहीं थी, परन्तु अपने विलास के लिए मर-मिटने की भावना अवश्य थी। बड़े-बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हादसों पर भी ये मौन एवं निश्चित बने रहते थे, परन्तु निजी जीवन में छोटी-सी घटना इन्हें बेचेन कर देती थी। लेखक ने लिखा है कि मीर और मिरजा विलासी थे, कायर नहीं। उनमें राजनीतिक भावों का अधःपतन हो गया था। व्यक्तिगत वीरता का उनमें अभाव न था, इसलिए जब ईस्ट इण्डिया कंपनी के सैनिकों ने लखनऊ में घुसकर नवाब वाजिद अली शाह को बन्दी बना लिया, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, वे निश्चित बने रहे परन्तु वे शतरंज में अपने-अपने वजीरों को बचाने के लिए आपस में झगड़ पडे। आपसी झगडे में उनका खानदानी अहंकार जाग उठा तथा वे एक-दूसरे पर ही तलवार से वार कर बेठे तथा मृत्यु को प्राप्त हो गये। यह केवल शतरंज के दो खिलाड़ियों का अन्त नहीं हे वरन्‌ एक पतनशील समाज का भी है, जो मूल्यों और कर्त्तव्यों के लिए जान नहीं देता, बल्कि अपनी विलासिता की पूर्ति के लिए जान दे देता है। सामाजिक और राजनीतिक चेतना से शून्य ऐसा समाज भोग-विलास के लिए जीता हे तथा नष्ट हो जाता हे।


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