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सातवाहन कौन थे? सातवाहनों के संदर्भ में दक्‍कन में प्रारंभिक राज्य गठन की व्याख्या करे।

सातवाहनों को पुराणों में अंधों के रूप में भी जाना जाता है, यह दक्खन क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन भारतीय राजवंश था। अधिकांश आधुनिक विद्वानों का मानना ​​है कि सातवाहन शासन ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में शुरू हुआ और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक चला, हालांकि कुछ लोग अपने शासन की शुरुआत को पुराणों के आधार पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के रूप में मानते हैं, लेकिन पुरातात्विक साक्ष्यों के बारे में पता नहीं चल पाया है। । सातवाहन राज्य में मुख्य रूप से वर्तमान तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र शामिल थे। अलग-अलग समय पर, उनका शासन आधुनिक गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों तक बढ़ा। वंश के अलग-अलग समय में अलग-अलग राजधानी शहर थे, जिनमें प्रतिष्ठान (पैठण) और अमरावती (धरणीकोटा) शामिल थे।

   राजवंश की उत्पत्ति अनिश्चित है, लेकिन पुराणों के अनुसार, उनके पहले राजा ने कण्व वंश को उखाड़ फेंका। मौर्य युग के बाद, सातवाहनों ने दक्कन क्षेत्र में शांति स्थापित की, और विदेशी आक्रमणकारियों के हमले का विरोध किया। विशेष रूप से शक पश्चिमी क्षत्रपों के साथ उनके संघर्ष लंबे समय तक चले। राजवंश गौतमीपुत्र सातकर्णी और उनके उत्तराधिकारी वासिष्ठिपुत्र पुलमवी के शासन के तहत अपने चरम पर पहुंच गया। राज्य 3 वीं शताब्दी की शुरुआत में छोटे राज्यों में विभाजित हो गया।

   सातवाहनों को उनके शासकों की छवियों के साथ मारा गया भारतीय राज्य सिक्का जारी करने वाले थे। उन्होंने एक सांस्कृतिक पुल का निर्माण किया और भारत-गंगा के मैदान से लेकर भारत के दक्षिणी सिरे तक व्यापार और विचारों और संस्कृति के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म का भी समर्थन किया और प्राकृत साहित्य का संरक्षण किया।

   सातवाहन शासकों को दूसरे नाम “आन्य्राओं से भी जाना जाता है। इन राजाओं के नामों की सूची इुछणों में भी पायी जाती है। इन सूचियों को ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में दूसरे साक्ष्यों के साथ आलोचनात्मक तुलना किये बिना उपयोग करने में बहुत सी कठिनाइयाँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर, विभिन्‍न उुरणों में राजाओं के नाम एवं उनके शासनकाल में काफी अन्तराल है। इससे मी अधिक बड़ी समस्या यह है कि इन राजाओं के विषय में सूचना केवल कल्पित एवं किंवदंतियों में निहित हैं। इसलिए वास्तविकता एवं किंवदंतियों के बीच अन्तर करने के लिए इन स्रोतों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करना चाहिए। यदि अन्य स्रोतों जैसे कि सिक्‍कों व शिलालेखों के साथ एुयाणों का अध्ययन किया जाये तो वे काफी उपयोगी हैं। सातवाहनों ने काफी बड़ी संख्या में सीसे, चांदी व तांबे के मिश्रित सिक्‍कों को ढलवाया। उनके चांदी के सिक्कों पर राजा का चित्र एवं नाम खुदा हुआ है। बौद्ध गुफाओं से पत्थर पर खुदे लेख एवं लिपिबद्ध किये दान के विवरण प्राप्त हुए हैं जिनको सातवाहन राजाओं एवं रानियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में साधारण लोगों ने बनवाया। इन विभिन्‍न स्रोतों से प्राप्त सूचना का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद सामान्यतः: विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि सातवाहनों ने प्रथम बी.सी.ई. के आसपास अपना शासन करना प्रारंभ किया। उनका सबसे प्रारम्भ का साक्ष्य महाराष्ट्र राज्य के नासिक के पास एक गुफा में पत्थर पर उत्कीर्ण लेख के रूप में पाया गया है।

   सामान्यतः विद्वान लोग इस तथ्य से सहमत हैं कि बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए राज्य एक सक्षम औजार है। एक राज्य मली भांति परिभाषित एक क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है और कर तथा राजस्व को एकत्रित करने के लिए एक प्रशासनिक मशीनरी को बनाकर रखता है। वह एक स्थायी सेना को भी रखता है जो कानून एवं व्यवस्था को बनाये रखने में मदद करती है। लेकिन इन सबके साथ-साथ समाज में असमानता एवं वर्ग विभेदन भी बढ़ता है। यहाँ शासक और शासित के मध्य स्पष्ट भेद है। शासनकर्त्ता अपने लाम एवं उपयोग के लिए समाज के संसाधनों पर नियंत्रण रखते हैं। दूसरी ओर शासित वर्ग शाही परिवार के सदस्यों, राज्य के कुलीनों, बहुत से अधिकारियों के रख-रखाव के लिए आवश्यक घन एवं राजस्व उपलब्ध कराते है। इस प्रकार कबीलाई समाज एवं राज्य समाज में मूलभूत अन्तर राजनीति के नियंत्रण की प्रकृति में निहित है। राज्य व्यवस्था के अंतर्गत विशेषज्ञात्मक प्रशासनिक व्यवस्था शासक एवं शासित को अलग करती है। कबीलाई समाज में सामान्यतः: एक कबीले के द्वारा राजनैतिक शक्ति का उपयोग किया जाता है जिसके पास अपने निर्णयों को लागू करने के कोई अधिकार नहीं होते। कबीले की स्थिति सदस्यों की वफादारी पर निर्मर करती है इसलिए अधिकतर निर्णयों को एक साथ ही करना होता है।

   बुराणों के अनुसार सिमुक सातवाहन ने सातवाहन शक्ति की स्थापना की। उसके भाई कन्हा या कृष्ण के विषय में हमें जानकारी नासिक के लेख से प्राप्त होती है। वंश के अनेक शासकों का विवरण रानी नागनिका के नानाघाट शिलालेख से भी प्राप्त होता है जो राजा सातकर्णी की विधवा थी तथा उसने वैदिक बलि यज्ञों का आयोजन किया था। नानाघाट एक काफी बड़ा दर्रा था जो जुन्नर को समुद्र तट से जोड़ता था और इस दरें के ऊपर एक गुफा है जिसमें सातवाहन शासकों की आकृतियां खुदी हुयी है। दुर्भाग्यवश ये मूर्तियाँ अब पूर्णतः नष्ट हो चुकी हैं और जो अवशेष बचे हैं वे मस्तक के ऊपर नामपत्र पर मात्र नाम देते है।

   सातकर्णी के बाद गौतमीपुत्र सातकर्णी के शासनकाल तक जिन शासकों ने शासन किया उनके विषय में हमें काफी कम जानकारी है। नासिक में एक गुफा के प्रवेश द्वार पर गौतमीपुत्र सातकर्णी की माता का एक लेख खुदा हुआ है जिससे उसके राज्य के फैलाव एवं उसके शासन काल की घटनाओं का विवरण प्राप्त होता है। गौतमीपुत्र सातकर्णी की मुख्य उपलब्धि यह है कि उसने पश्चिम दक्‍्कन एवं गुजरात के क्षत्रपों को पराजित किया था। उसकी माता के इस लेख में इस तथ्य की प्रशंसा की गई है कि उसने पुनः सातवाहन गौरव को स्थापित किया था और इस तथ्य की पुष्टि मुद्रा साक्ष्यों से मी होती है। अपनी जीत के बाद गौतमीपुत्र सातकर्णी ने अपने खुद के लेख और प्रतीकों के साथ क्षत्रप नाहपण के चांदी के सिक्‍कों का प्रतिकार किया। प्रेरिल्पस ऑफ दी ऐश्थिए्यिन सी के अनुसार सातवाहनों एवं क्षत्रपों के मध्य चलने वाले संघर्ष के कारण मुम्बई के पास स्थित बन्दरगाह में ठहरे हुए ग्रीक जहाजों को सुरक्षा के साथ भड़ौच स्थित बन्दरगाह पर भेजा गया। शायद अति आवश्यक विदेशी व्यापार को लेकर इन दोनों के बीच संघर्ष था। ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र सातकर्णी शासनकाल में ही अच्छी प्रकार से सातवाहनों का शासन आंप्र प्रदेश तक फैल गया था।

   गौतमीपुत्र सातकर्णी के बाद उसका पुत्र पुलुमावि शासक हुआ और इस समय तक सातवाहनों में अपनी शक्ति का फैलाव पूर्वी दककन तक कर लिया था। हमें पहली बार सातवाहनों के लेख पश्चिमी दक्‍कन से बाहर अमरावती में प्राप्त होते हैं। यजनगश्रीसातकर्णी अंतिम महत्त्वपूर्ण सातवाहन शासक था और उसके बाद उनके

साम्राज्य का विभाजन उसके उत्तराधिकारियों के बीच हो गया जिनकी एक शाखा ने आंध्र क्षेत्र में शासन किया। बाद के सातवाहन शासकों ने ट्विमाषा में लिखे हुए सिक्कों को जारी किया जिसमें राजा का नाम प्राकृत भाषा में लिखा हुआ है और मुद्रा लेख किसी एक दक्षिणी भाषा में। इस भाषा को लेकर विद्वानों में मतमेद हैं। कुछ का मानना है कि यह तमिल में हैं तो कुछ के अनुसारयह तेलगू में हैं।

   क्षत्रपों के साथ-साथ प्रारम्भिक सातवाहन शासक को उडीशा का कलिंग की खारवेल शक्ति के साथ संघर्ष करना पड़ा। खारवेल ने प्रथम शताब्दी बी.सी.ई में कलिंग में अपनी शक्ति की स्थापना की थी। सातवाहन शासक सातकर्णी की परवाह किये बगैर प्रश्चिमत की ओर अपनी सेना को भेजा। ऐसा कहा जाता है कि सातवाइन शासक को क्षत्रपों और खारवेल नरेश के हाथों पराजय भोगनी पड़ी। इसको केवल गौतमीपुत्र सातकर्णी ने पुनः स्थापित किया।

   सातवाहन इतिहास की यह भी एक समस्या है कि हमें दक्‍कन के उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी नहीं है जहाँ छोटे सरदार विद्यमान थे। उदाहरण के लिए एक क्षेत्र में सातवाहनों का महारठी एवं महाभोजों के बीच वैवाहिक संबंधों का संदर्भ मिलता है - वास्तव में नानाघाट के अभिलेख में एक महारठी सरदार एक राजकुमार पर अग्रता प्राप्त कर लेता है और नायनिका रानी स्वयं एक महारठी सरदार की पुत्री थीं।

   महारठियों ने भी स्वयं स्वतंत्र रूप से दान किये - उनके अधिकतर अभिलेख कार्ले के आस-पास प्राप्त हुए हैं जबकि महाभोजियों के अधिकतर साक्ष्य पश्चिमी तट के क्षेत्र में मिलते हैं।

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