गुप्त काल में उत्तर भारत की चारित्रिक विशेषताएं कान्यकुब्ज के मौखरि, मगच के गुप्त, पश्चिम बंगाल के गौड़ (मुर्शिदाबाद जिला), वल्लभी के मैत्रक (सौराष्ट उपड्ठीप), थानेसर के पुष्यभूति जैसे अनेक शासकीय परिवारों का उद्भव था। इनमें से अनेक गुप्तों के अधीनस्थ भे। परन्तु गुप्लवंश के राजनैतिक अधिकारों के पतन के पश्चात ये स्वयं को स्वतन्त्र मानने लगे। इस प्रकार 6वीं शताब्दी सी. ई. का उत्तर भारत अपने-अपने क्षेत्रीय सन््दर्मों पर आधारित, अनेक शक्तियों की रणभूमि बना, जो आपस में संघर्षरत थीं। इस प्रकार के राजनैतिक परिदृश्य में सामना (अधीनस्थ) शक्तिशाली होकर उभरे। उन्होंने दूरस्थ क्षेत्रों पर नियंत्रण रखा अभवा अपने अधिपलियों के राजनैतिक केन्द्रों से युद्ध लडे। स्थानीय एयं क्षेत्रीय शक्तियों के उदय को इस काल की कसौटी माना जाता है।
पूर्व में कान्यकुब्ज या महोदय नाम से जाना जाने वाला कन्नौज, आधुनिक उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में स्थित, आरम्मिक मध्यकाल में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऊँचाई क्षेत्र में गंगा-यमुना दोआब में स्थित कन्नौज की किलेबन्दी सुगमता से कराई जा सकती थी। इस प्रकार मैदानी क्षेत्र में इसकी अनुकूल अयस्थिति के बावजूद इसे सुगमतापूर्वक किलेबन्दी करके सुरक्षित किया जा सकता था। इसके अतिरिक्त कन्नौज मूलत: पश्चिमी गंगा तटीय क्षेत्र के कृषि विस्तार के अन्तर्गत आता था। भूमि अनुदान इस क्षेत्र में प्रचुरता में किया जा सकता था। प्राकृतिक रूप से इस क्षेत्र ने ब्राह्मणों को आकर्षित किया जो यहाँ आकर बसे एवं आगामी शतार्दियों में पूरे देश के राजदरबारों में विस्तुत रूप से प्रतिष्ठित हुए। कन्नौज पूर्व में गंगा क्षेत्रों के साथ ही साथ दक्षिण में जाने वाले मार्गों से भी मली प्रकार जुड़ा था। इन सभी कारकों के कारण कन्नौज शक्ति के रूप में उभरा एवं उत्तर भारत में केन्द्र के रूप में महत्व स्थापित किया। इस विकास के साथ हमें देखते हैं केन्द्र बिन्दु, दक्षिण बिहार के पाटलिपुत्र से कन्नौज की तरफ स्थानान्तरित होता है। कन्नौज उत्तर भारत की राजनीति में एक केन्द्रीय विषय के रूपये उम्रा।
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