Recents in Beach

सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।। अगुन अरूप अलख अज जोई | भगत प्रेम बस सगुन सो होई |। जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहीं जैसें।। जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा। तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा।।

(ख) सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।

अगुन अरूप अलख अज जोई | भगत प्रेम बस सगुन सो होई |

जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहीं जैसें।।

जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा। तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा।।

राम सच्चिदानंद दिनेसा। नहिं तहैँ मोह निसा लवलेसा।।

सहज प्रकासरूप भगवाना। नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना।।

हरष बिषाद ग्यान अग्याना। जीव धर्म अहमिति अभिमाना |

राम ब्रहम ब्यापक जग जाना। परमानंद परेस पुराना।।

उत्तर – संदर्भ

प्रस्तुत काव्यांश रामचरितमानस' के बालकांड से लिया गया है। पार्वती राम के संदर्भ में शिव से पूछती हैं कि जो राजपुत्र हैं, स्त्री के विरह में व्याकुल हैं, वह ब्रहम कैसे हैं? पार्वती के प्रश्न के समाधान के क्रम में शिव सगुण और निर्गुण के अभेद पर प्रकाश डालते हैं।

व्याख्या

शिव कहते हैं कि मुनि गण, ज्ञानी, वेद और पुराण सभी की यही मान्यता है कि सगुण और निर्गुण में वास्तव में कोई भेद नहीं है। ब्रहम मूलतः निर्गुण, निराकार और अनिर्वचनीय है जो अपने भक्तों के प्रेम के कारण सगुण रूप में प्रकट होता है, अर्थात उनके दुखों के निवारण के लिए अवतार लेता है। जो निर्गुण है वह सगुण कैसे है? इस प्रश्न का समाधान करते हुए वे कहते हैं कि जैसे पानी और बर्फ में तत्वतः कोई भेद नहीं है वैसे ही सगुण और निर्गुण दोनों एक ही है। जिसका नाम श्रम रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य रूपी प्रकाश के समान है वह स्वयं मोहग्रस्त कैसे हो सकता हैं? राम सत्य और आनंदस्वरूप सूर्य हैं, वहाँ लेशमात्र मोह नहीं व्यापता है। वे सहज ही प्रकाशवान हैं, वहाँ विज्ञान रूपी प्रात: काल नहीं होता है। प्रातः काल की ज्योति तो वहाँ होती है जहाँ पूर्व में रात्रि का अंधकार रहा हो। अर्थात दिन और रात का क्रम, अंधकार और प्रकाश का क्रम, ज्ञान और अज्ञान का क्रम इस जगत के ज्ञान-विज्ञान का सत्य है। राम इन सबसे परे हैं। सुख, दुख, ज्ञान, अज्ञान, अभिमान- यह सब जीव का स्वभाव है। परम आनंद स्वरूप राम इन सबसे ऊपर हैं। इसे सारा संसार जानता है। वे प्रसिद्ध पुरुष हैं और प्रकाश के पुंज हैं। वे सबके स्वामी हैं। राम की महिमा का बखान कर, रघुकुल मणि रामचंद्र जी को अपना स्वामी मानते हुए शिव जी ने उन्हें प्रणाम किया।


Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close