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अम्बर पनघट में डुबो रही- तारा-घट ऊषा नागरी । खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा, किसलय का अंचल डोल रहा,

 3. अम्बर पनघट में डुबो रही-

   तारा-घट ऊषा नागरी ।

   खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,

   किसलय का अंचल डोल रहा,

   लो यह लतिका भी भर लाई-

   मधु मुकुल नवल रस गागरी।

उत्तर कवि कहता है- 'रात बीत गई है सखी! अब जाग जा। देख उषा-काल में अरुणिम उषा की उज्ज्वलता  के कारण तारें ऐसे विलीन हुए जाते हैं मानो कोई सुंदर रमणी(उषा रूपी) अपने घट को (ताराओं के) पनघट/सरोवर में (अम्बर रूपी) डुबो रही हो।' इस प्रकार कवि ने उषा के आगमन से अंधकार के तिरोहित हो जाने तथा तारकों के प्रकाश में विलीन होने की क्रिया को रमणी, घट और पनघट के रूपक से प्रकट किया है।

            कवि आगे कहता है- 'सखी देख 'खग-कुल' अर्थात पक्षियों का समुदाय 'कुल-कुल' की  मीठी आवाज निकाल रहा है। सुखद- शीतल मलयानिल के प्रवाह के कारण 'किसलय' अर्थात नव-पल्लवों(नई कोपलों) का समूह आँचल के समान डोल रहा है तथा यह देख, यह लता भी मधुमय सौरभ युक्त नव-कलिकाओं से भर कर रस की गागर के समान प्रतीत हो रही है।'  हर तरफ चहल-पहल है, प्रभात का उत्सव है। कवि ने प्रभात कालीन वातावरण का अत्यन्त मनोरम चित्रण प्रस्तुत किया है। उसकी सौदर्यान्वेषी दृष्टि से कोई भी छोटी-बड़ी घटना बची नहीं है। प्रकृति के प्रत्येक स्पन्दन में सौंदर्य के दर्शन करते हुए कवि ने उसमें  चेतना का आरोप करते हुए उसका मानवीकरण कर दिया है।

प्रातःकाल हो गया है, इस तथ्य पर बल देते हुए सखी कहती है कि पक्षियों के कलरव (चहचहाने) का स्वर सुनाई दे रहा है और कोंपल के आँचल में थिरकन हो रही है, अर्थात्‌ धीमी-धीमी हवा से कोंपलें थिरकने लगी हैं। और सुनो, यह लता भी अपने अधखिले फूल रूपी गगरी में नया रस भर लाई है। कली से फूल बदलने की प्रक्रिया में अथधखिले फूल की आकृति कलश यानी गगरी जैसी होती है और बीच में ताज़ा रस से पूर्ण पराग होता है। अतः यहाँ अधखिले फूल और रस से भरी गगरी की समानता और एक-सी दीखने के आधार पर रूपक खड़ा किया गया है।

पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ने लगा है। धीरे-धीरे चलने वाली सुबह की हवा के स्पर्श से कोंपलों में थिरकन होने लगी है और लता भी जैसे अपने नए अधखिले फूलों के रूप में रस की गगरी भर लाई है।

पक्षियों के चहचहाने को कलरव कहते हैं-'कल' का रव यानी कल-कल की आवाज़। इसी को यहाँ कुल-कुल कहा गया है। कुल का एक अर्थ होता है समूह। खग-कुल यानी पक्षियों का समूह कुल-कुल-सा बोल रहा अर्थात्‌ पक्षी कलरव कर रहे हैं।

इतनी-सी बात को कवि ने बड़ी सुंदरता से उपमानों के सहारे व्यक्त किया है। 'कुल-कुल-सा' पर ध्यान दें । ऊषा नागरी अंबर रूपी पनघट में तारा-घट डुबो रही है| पानी में डुबो कर घड़ा भरते समय जो 'कुल-कुल' की आवाज होती है वह खग-कुल पक्षी समूह के कलरव से व्यक्त हो रही है। इसलिए कहा है-खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा। घड़ा भरने के बाद उसे सिर पर उठाकर ला रही है लतिका। लतिका नए रस से भरी गागर लेकर चली आ रही है।

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