दुर्खीम प्रकार्यवादी' नहीं है जिस अर्थ में यह शब्द प्रयोग हुआ है जिस उपागम के लिए ब्रितानी समाज मनाव विज्ञानी, ए.आर. रेडालिक ब्राउन (1881-1955) ने इसका प्रयोग किया है और बॉनीस्लाव मैलिनॉस्की (1884-1942) ने जिस प्रकार इसका समर्थन किया है। दुर्खाम 'प्रकार्यवाद' शब्द का प्रयोग नहीं करते, हॉलाकि वे सामाजिक प्रकार्य की संकल्पना को परिभाषित करते हैं। कोई दुर्खीम के कार्य के सही सह-अस्तिव ऐतिहासिक (आनुवंशिक, विकासवादी और ऐतिहासिक) और सयकालिक (समाज यहाँ और अब) उपागम से अवगत हो सकता है। उदाहरण के लिए, अपने धर्म के प्रमुख अध्ययन मे, वह आस्ट्रोलियाई टोटमवाद के विचार से शुरू करते है, जो धार्मिक जीवन की सबसे प्रांरभिक रूप है, इसके उद्गम के अनुमान की बजाय वह टोटमवाद के प्रकार्य से ज्यादा संबध रखते है और किस प्रकार इसका अध्ययन जाटिल समाजों में घर्म के स्थान को समझने में मदद कर सकता है। समकालिक (या वर्तमान) समाजों के अध्ययन पर जोर ने परवर्ती विद्वानों पर जबरदस्त प्रभाव डाला।
बीसवीं शताब्दी की
शुरूआत ने प्रकार्यवाद के उदय और विकासवादी सिद्धांत के लोप को देखा। एडन कुपर (1973) मानते हैं कि प्रकार्यवाद के लिए वर्ष 1922 आश्चर्य
का साल (एनस मिराविलिस) था। इसी वर्ष दो प्रबन्ध प्रकाशित
हुए जिसने कार्यात्मक उपयोग को प्रमावित किया। पहला रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा अडमान
आइलैंडर्स और दूसरा, मेलिनॉस्की द्वारा पश्चिमी प्रशांत के
अर्गोनॉंट्स था। मानव विज्ञानी प्रकार्यवाद का प्रभाव अन्य विषयों विशेषतया
समाजशास्त्र पर भी अनुभव किया गया, टेल्कोट पार्सन्स जैसे
समाजशास्त्री कार्यवादी मानव विज्ञानिय के लेखन से प्रभावित थे। इसके परिणामस्वरूप
प्रकार्यवाद एक महत्वपूर्ण उपागम के रूप में उमरा, इसका
प्रभाव 1960 दशक के अंत और 1970 दशक के
प्रारंभ तक रहा। इसके 150 वर्षों के इतिहास में, पहला कॉम्ट के प्रत्यक्षयाद में, उसके बाद दुर्खीम
के 'समाजक्षेत्रीय प्रत्यक्षयाद' में,
और फिर बीसवीं शताब्दी के प्रकार्यवादियों के कार्य में, प्रकार्याद कई तथ्य और रूपांतर समाहित करके आया है। कई प्रकार्यवादियों के
मध्य तर्क संगत अंतर पाया जाता है - वास्तव में, उनमें से
कुछ मुख्य प्रतिद्वंदी हैं, जैसे कि रेडक्लिफ ब्राउन और
मैलिनॉस्की। उनके मध्य मतमेद होने के वावजूद, ऐसा लगता है कि
समी प्रकार्यवादियां के कार्य में निम्न पांच प्रतिज्ञाप्तियों एक समान हैं।
1) समाज (या संस्कृति) अन्य पद्थतियोँ की तरह एक पदघति है, जैसे कि सौर- मंडल, या जैव मंडल।
3) प्रत्येक माग अपना कार्य करता है - यह पूरे समाज (या संस्कृति) को अथवा योगदान देता है - और यह अन्य भागों के साथ भी संबंध बनाकर कार्य करता है।
4) 4) एक भाग में परिवर्तन दूसरे भाग में भी परिवर्तन लाता है, या कम से कम दूसरे माग और के कार्य को प्रमावित करता है, क्योंकि सभी भाग एक दूसरे से नजदीकी संबंध बनाकर जुड़े रहते है।
5) पूरा समाज या संस्कृति - जिसके लिए हम 'पूर्ण / संपूर्ण' शब्द का प्रयोग कर सकते हैं यह सभी हितों के योग से बड़ा होता है। यह किसी भाग से कम नहीं हो सकता, या कोई भाग संपूर्ण को व्याख्या नहीं कर सकता। एक समाज (या संस्कृति) कीअपनी पहचान होती है, अपनी “घेतना' होती है, या दुर्खीम के शब्दों में, 'सामूहिक चेतना होती है।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box