प्राकृत क्षेत्रीय उपप्रकारों
को दर्शाती है। संस्कृत भाषा के अत्यधिक साहित्यिक विकास ने प्राकृत भाषा पर दबाव
बढ़ाया जिसके कारण भी व्याकरण, शब्दकोष तथा विभिन्न ग्रंथ
प्राकृत में लिखे गये। संस्कृत और पाली दोनों का सह-अस्तित्व था, लेकिन उन्होंने अपनी जगह अलग-अलग क्षेत्रों में बनाई। गुप्त काल से पहले,
खासकर अशोक के शिलालेखों को प्राकृत में ही लिखा गया है। यिभिन्न
प्रकार के लौकिक साहित्य की रचना भी प्राकृत में की गई है। प्राकृत, व्याकरण और ध्वनि दोनों में ही संस्कृत से काफी आसान भी।
पाली में स्वयं स्थानीय प्रकार
भे और यह किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं थी। जैनों ने बौद्धों की तरह संस्कृत
का बहिष्कार करके अर्धमगची भाषा को अपनी रचनाओं के लिए अपनाया। हालांकि दूसरी
शताब्दी के आसपास बौद्ध ग्रन्थ उत्तर भारत में और दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों
में प्रायद्वीप को छोड़कर संस्कृत में लिखे गये थे। लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं
हो पाया है कि आधी सहसराब्दी के पश्चात् किन कारकों ने बौद्धों को संस्कृत भाषा अपनाने
पर मजबूर किया। कुछ विद्धानों का तर्क है कि बौद्धों ने ऐसा सोचा होगा कि ये तब तक
ब्राह्मणों को प्रभावित नहीं कर सकते है जब तक कि वे उनके पंसद की भाषा को नहीं
अपनाते है। यह भी तर्क दिया जाता है कि संस्कृत भाषा को अपनानापश्चिम में मथुरा
में बौद्ध धर्म के प्रवेश का परिणाम था; मथुरा आर्यवर्त के
मुख्य क्षेत्र में स्थित भा जहां वैदिक संस्कृत का वर्चस्व था।
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