हालांकि स्वायत्ता आंदोलनों का उद्देश्य अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर आए बिना राज्य के पुनर्गठन वाले क्षेत्रों के बीच शक्ति संबंधों को स्थापित करना है, फिर भी सभी स्वायत्ता आंदोलनों की यह पहली मॉग नहीं थी। कुछ स्वायत्ता के आंदोलनों ने एक या अधिक राज्यों में से पृथक राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू किया, किंतु आंदोलन के दौरान मौजूदा राज्य में स्वायत्ता प्राप्त करने की उनकी माँग को छोड़ दिया गया। मेघालय के मामले में आंदोलन ने असम को पृथक राज्य बनाने के अपने उद्देश्य से शुरू किया, लेकिन अलग राज्य के समर्थकों ने सन् 1971-1972 में राज्य के भीतर एक राज्य का दर्जा स्वीकार कर लिया। पृथक राज्य के आंदोलन और विद्रोह की माँग की तरह, स्वायत्ता आंदोलनों को निम्नलिखित विशेषताएं हैं :
1) ये उन
क्षेत्रों में उठाये जाते हैं जहाँ पर लोगों के साथ भेदभाव होता है। ये भेदभाव आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक तौर पर संसाधनयुक्त क्षेत्रों द्वारा किया जाता
है।
2) इन माँगों को
समाज के मुखर तबकों द्वारा उठाया जाता है जैसे मध्यम वर्ग, छात्र, नागरिक समाज के संगठन एवं राजनैतिक दल।
3) स्वायत्ता की
माँग करने वालों का आरोप है कि उनका क्षेत्र “आंतरिक उपनिवेश” बन गया है, विशेषकर विकसित
क्षेत्रों का 'उपनिवेश | उनके
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण बाहरी लोगों द्वारा दिया जाता है तथा वे उन्हें अपने
संसाधनों के प्रयोग बदले कोई भरना रोयल्टी भी नहीं मिलती।
4) उनके क्षेत्र
को राज्य के राजनीतिक संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है तथा उनकी
सहमति के बिना निर्माण लिये जाते हैं।
5) उनकी भाषा एवं
संस्कृति को उचित पहचान नहीं दी जाती हैं तथा कई मामलों में उनके ऊपर भाषा थोपी
जाती है।
6) स्वायत्ता
आंदोलनों का कुछ राजनैतिक संदर्भ भी होता है।
भारत
में स्वायत्ता आंदोलन के ये कुछ समान कारक हैं, लेकिन उनका प्रभाव एवं आकार से
अलग-अलग क्षेत्रों में अलग होता है।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box