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फीचर का तात्पर्य बताते हुए उसके विभिन्‍न पक्षों का विवेचना कीजिए ।

फीचर लोगों को रुचिकर लगने वाला ऐसा कथात्मक लेख है जो हाल के ही समाचारों से जुड़ा नहीं होता बल्कि विशेष लोग, स्थान, या घटना पर केन्द्रित होता है। विस्तार की दृष्टि से रूपक में बहुत गहराई होती है।

फीचर समाचारों के प्रस्तुतिकरण की ही एक विधा है लेकिन समाचार की तुलना में फीचर में गहन अध्ययन, चित्रों, शोध और साक्षात्कार आदिके जरिए विषय की व्याख्या होती है। उसका विस्तृत प्रस्तुतिकरण होताहै और यह सब कुछ इतने सहज और रोचक ढंग से होता है कि पाठक उसके बहाव में

बंधता चला जाता है। पत्रकारिता ओर साहित्य के विद्वानों ने रूकक की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़ी हैं। एक परिभाषा के अनुसार,

“रोचक विषय का मनोरम ओर विशद प्रस्तुतिकरण ही फीचर है। इसमें दैनिक समाचार, सामयिक विषय और बहुसंख्यक पाठकों की रूचि वाले विषय की चर्चा होती है। इसका लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जन उपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना है।”

एक अन्य परिभाषा के अनुसार,

“फीचर समाचार मूलक यथार्थ, भावना-प्रधान और सहज कल्पना वाली रसमय एवं संतुत्रित गदयात्मक एवं दृश्यात्मक, शाश्वत, निसर्ग और मार्मिक अभिव्यक्ति हैं।'

एक अन्य परिभाषा में तो फीचर को 'समाचार पत्र की आत्मा' कह दिया गया है।

सामान्य शब्दों में कहें तो समाचार का काम तत्थ्य और विचार देकर खत्म हो जाता है। जबकि फीचर का काम इससे आगे का होता है। यह समाचार की पृष्ठभूमि का खुलासा करते हैं, विषय या घटना के जन्म और विकास का विवरण देते हैं। यह विषय अथवा घटना का पूरा खुलासा भी करते हैं और पाठक को कुछ सोचने के लिए भी विवश करते हैं। एक अच्छे फीचर की सार्थकता इसी बात में है कि वह अपने पाठकों के मन मष्तिष्क पर कितना प्रभाव डालती है। फीचर लेखक घटना या विषय के बारे में अपनी प्रतिक्रिया या विचार भी पाठक को बतलाता है। और इस तरह पाठक की कल्पना शक्ति को और उसकी वैचारिक मनःस्थिति को भी प्रभावित करता है।

फीचर का महत्व इसी बात में है कि यह कब, क्यों, कैसे, कहां और कौन को स्पष्ट करने वाले समाचार यानी न्यूज से आगे जाकर तत्थ्य कल्पना और विचार की संतुलित प्रस्तुति के जरिए अपना एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। फीचर का एक महत्व यह भी है कि यह पाठक के मन में किसी खबर को पढ़ने के बाद पैदा हुई जिज्ञासा को भी संतुष्ट करता है। आजकल समाचार पत्रों में फीचरों का उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोप में जारी जबर्दस्त सरदी और हिमपात पर भारतीय भाषाई अखबारों में विस्तृत समाचारों के लिए स्थानाभाव हो सकता है। लेकिन इसी विषय को महज एक छोटी सी जगह में एक सचित्र फीचर के जरिए प्रस्तुत कर अखबार अपने स्थानाभाव की समस्या से भी उबर सकते हैं और पाठक को बर्फ से जमे यूरोप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी भी मिल जाती है। इसी तरह किसी स्थानीय दुर्घटना के समाचार के साथ- साथ अगर उस तरहकी अन्य घटनाओं का विवरण, रोकथाम के उपायों, प्रभावितों के अनुभव आदि एक सचित्र फीचर के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है तो इससे पाठक को सम्पूर्ण जानकारी एक साथ मिल जाती है। फीचर के इस उपयोग ने आज फीचर के महत्वको अत्यधिक बढ़ा दिया है।

फीचर रचना का मुख्य नियम यह है कि फीचर आकर्षक, तत्थ्यात्मकऔर मनोरंजक होना चाहिए। वर्तमान में फीचर के लिए किसी खास प्रकार का ले आऊट, साज सज्जा, आकार-प्रकार या शब्द सीमा का बंधन नहीं रह गया है। आज कम से कम शब्दों में फीचर रचना को अधिक महत्वपूर्ण माना जाने लगा है। इसी तरह अब एक विषय पर एक बड़ी रचना के बजाय एक साथ छोटी-छोटी कई सूचनाओं-सामग्रियों को प्रस्तुत करके भी फीचर लिखे जाने लगे हैं।

मोटे तौर पर फीचर लेखन के लिए 5 मुख्य बातों का ध्यान रखा जाता है-

(1) तत्थ्यों का संग्रह : जिस विषय या घटना पर फीचर लिखा जाना है उससे जुड़े, तत्थ्यों को एकत्रित करना सबसे जरूरी काम है। तत्थ्यों और जानकारी को जुटाए बिना फीचर की रचना हो ही नहीं सकती। जितनी अधिक जानकारी होगी, फीचर उतना ही उपयोगी और रोचक बनेगा। तत्थ्यों के संग्रह में इस बात का भी खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि तत्थ्य मूल स्रोत से जुटाए जाएं ओरवह एकदम सही हों। गलत तत्थ्यों से फीचर का प्रभाव ही उल्टा हो जाता है।

(2) फीचर का उद्देश्य : फीचर लेखन का दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु फीचर के उद्देश्य का निर्धारण है। किसी घटना या विषय पर लिखे जाने वाले फीचर का उद्देश्य तय किए बिना फीचर लेखन स्पष्ट नहीं हो सकता। किसी दुर्घटनासे जुड़ा फीचर लिखने के लिए यह तय करना जरूरी है कि दुर्घटना के किस पहलू पर फीचर लिखा जाना है, दुर्घटना के इतिहास पर, दुघर्टना के प्रभावों पर, दुर्घटना की रोकथाम के तरीकों पर या दुर्घटना के यांत्रिक पक्ष पर। एक बारउद्देश्य तय हो जाए तो फीचर लेखन का चौथाई काम पूरा हो जाता है।

(3) प्रस्तुतिकरण : फीचर लेखन का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण पक्ष है। फीचर लेखन में इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि फीचर मनोरंजक हो। उसे सरस और सुबोध टंग से प्रस्तुत किया जाए। तत्थ्यों का प्रस्तुतिकरण सहज हो और तत्थ्यों की अधिकता से पठनीयता खत्म न हो।

(4) शीर्षक तथा आमुख : किसी अच्छे समाचार की तरह ही अच्छे फीचर का शीषक और आमुख भी उपयुक्त ढंग से लिखा जाना चाहिए। अच्छे शीषक से पाठक सहज रूप से फीचर की ओर आकषित हो सकता है। खराब शीर्षक के कारण यह भी हो सकता है कि पाठक का ध्यान उसकी ओर जाए ही नहीं। इसी तरहअच्छा आमुख भी पाठक को बांध सकता है। बेतरतीब ढंग से लिखे आमुख के कारण पाठक में अरूचि पैदा हो सकती है। शीर्षक की विशेषता यह होनी चाहिएकि वह पाठक को आकृष्ट भी कर ले, पाठक में विषय के प्रति जिज्ञासा भी पैदा करे और साथक भी हो। शीषक में सिर्फ शब्दों की तुकबन्दी या शब्दों के ध्वन्यात्मक प्रभावों की अधिकता के प्रयोग से भी बचा जाना चाहिए।

(5) साज सज्जा : लेखन तब तक पूरा नहीं होता जब तक उसकी पर्याप्त साज सज्जा की तैयारी पूरी न हो जाए। फीचर के साथ इस्तेमाल होने वाले चित्रों, रेखाचित्रों और ग्राफिक्स का चयन भी फीचर रचना का एक जरूरी पहलू है। छपाई की वर्तमान तकनीक के कारण फीचर की साज सज्जा अब बेहद आसानहो गई है और उसमें तरह-तरह के प्रयोग करने की गुजाइंश भी बढ़ गई है।

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