Recents in Beach

जिस जा पे हांडी, चूल्हा तवा और तनूर है। खालिक की कुदरतों का उसी जा जहूर है।। चूल्हे के आगे आंच जो जलती हुजूर है। जितने हैं नूर सब में यही खास नूर है।। इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियां।।

(घ) जिस जा पे हांडी, चूल्हा तवा और तनूर है।

खालिक की कुदरतों का उसी जा जहूर है।।

चूल्हे के आगे आंच जो जलती हुजूर है।

जितने हैं नूर सब में यही खास नूर है।।

इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियां।।

उत्तर - संदर्भ : प्रस्तुत पद्यांश नजीर अकबराबादी की कविता 'रोटियाँ से ली गई है।

 

व्याख्या

प्रस्तुत पंक्तियों में नजीर अकबराबादी ने भूख और भोजन का बहुत ही यर्थाथवादी ढंग से वर्णन किया है। इस संसार सारे क्रिया-कलाप तभी संचालित किया जा सकता है जब मनुष्य का पेट भरा हुआ है। पेट की दुश्चिंता से मुक्त व्यक्ति ही सैर सपाटे की बातें सोच सकता है। बाग-बगीचे के सौंदर्य का अवलोकन एवं सराहना तभी कर सकता है जब वह भूखा न हो। जब व्यक्ति चिंताओं से मुक्त होता है तभी उसे प्रकृति के सौंदर्य में भी आनंद मिलता है। यहाँ तक की वह ईश्वर की अराधना अथवा अल्लाट की इबादत तभी कर पाएगा जब उसे पेट की चिंता न होगी। नजरी समाज में प्रचलित उस लोकोक्ति को सही मानते है जिसमें भूखे व्यक्ति के भजन न कर पाने की असमर्थता व्यक्त की गई है। नजीर का मानना है कि दरअसल व्यक्ति जब रोटी अर्थात अपनी तमाम जरूरतों से मुक्त हो जाता है तभी ईश्वर अथवा अल्लाह के प्रति समर्पित हो पाता है।

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close