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निर्भरता सिद्धान्त (Dependency Theory) की विवेचना कीजिए।

पराश्नयवादी दृष्टिकोण के कुछ प्रणेताओं का मानना है कि तीसरी दुनिया के देश आज भी राजनीतिक स्वतंत्रता से वंचित हैं तथा उन पर साम्राज्यवादी ताकतों की पकड़ आज भी बनी हुई है। इन लेखकों के अनुसार दुनिया एकल पूंजीवादी व्यवस्था में आबद्ध है।

   विकसित पश्चिम देश इस विश्व व्यवस्था के केंद्र का निर्माण करते हैं। औपनिवेशिक काल में साम्राज्यवादी देशों ने तीसरी दुनिया को अपनी जरूरतों के अनुरूप ढालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस प्रक्रिया में तीसरी दुनिया की अर्थव्यवस्था संरचनात्मक हूप से विकसित देशों की अर्थव्यवस्था से जुड़ गयी है और यही कारण है कि विकसित देशों पर उसकी निर्भरता आज भी बनी हुई है। विश्व पूंजीवाद से तीसरी दुनिया की हैसियत केंद्र से जुड़े अनुलग्नक जैसी है। केंद्र को महनगर/राजधानी भी कहते हैं। तीसरी दुनिया विश्व पूंजीवाद की परिधि पर स्थित है। इसे दृष्टिकोण के अनुसार तीसरी दुनिया का राज्य केंद्र/राजधानी के हाथ का औजार भर है।

   यह मानते हुए भी कि अल्पविकसित देशों पर विकसित पूंजीवादी देशों का वर्चस्व कायम है, पराश्रयवादी सिद्धांत के आलोचकों ने उस तर्क को खारिज कर दिया जिसके अंतर्गत कहा गया था कि तीसरी दुनिया के राज्य स्वायत्त नहीं होते। इन लेखकों का मानना है कि राजनीतिक आजादी से तीसरी दुनिया को राज्य का इस्तेमाल कर अपने हितों को संवर्द्धित करने का मौका मिला है, भले ही यह सब उसे नवऔपनिवेशिक प्रतिबंधों के तहत करना पड़ता है।

   इसी प्रकार तीसरी दुनिया के प्रभु वर्गों की प्रवृत्ति के बारे में भी तरह-तरह के विचार व्यक्त किए गए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि तीसरी दुनिया पर देसी पूंजीवादी वर्ग का वर्चस्व कायम है। किंतु प्रमुख विचार यही है कि तीसरी दुनिया में कोई सुगठित प्रभावशाली वर्ग नहीं है। वास्तव में तीसरी दुनिया में विभिन्‍न वर्गों का शिधिल गठबंधन ही प्रभुत्व की स्थिति में है।

   तीसरी दुनिया के राज्य की व्याख्या प्रभावशाली वर्गों के साथ उसके संबंध के संदर्भ में भी की जाती है। तीसरी दुनिया के बारे में लिखने वाले अधिकांश लेखकों का मानना है कि राज्य शासक वर्गों का गुलाम न होकर स्वायत्त है और यह स्वायत्ता सामाजिक संरचना द्वारा सीमांकित की जाती है। तीसरी दुनिया के राज्यों के विशिष्ट चरित्र के पीछे कुछ खास ऐतिहासिक व्यक्तियों की मौजूदगी भी कारण रही है। उपनिवेशों पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए औपनिवेशिक शासकों ने अतिकेंद्रित राज्य तंत्र का निर्माण किया था। इस तरह तीसरी दुनिया में राज्य तंत्र ऊपर से थोषी हुई चीज है न कि आंतरिक सामाजिक गत्पात्मकता से स्वत: स्फ्र्त चीज। और यही कारण है कि तीसरी दुनिया का राज्य अपने समाज से मेल नहीं खाता। यह अपने समाज की तुलना में काफी आगे अधवा अतिविकसित होता है।

   तीसरी दुनिया पर विविध दृष्टियों से विचार करने के बाद यह कहा जा सकता है कि तीसरी दुनिया का राज्य अतिविकसित और उत्तर औपनिवेशिक राज्य है तथा यह शासक वर्गों से स्वायत्त है। दूसरे शब्दों में यह तीसरी दुनिया की जटिल सामाजिक बनावट का प्रतिफलन है।

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